शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

मुझे रस्सी पे चलने का तजुर्बा तो नहीं, लेकिन



जरा फुर्सत से बैठा हूँ, नज़ारों पास मत आओ,
मैं अपने आप में खुश हूँ, बहारों पास मत आओ |

सितमगर ने जो करना था किया, मझधार में लाकर,
जरा  किस्मत भी अजमा लूं, किनारों पास मत आओ |

मुझे  रस्सी पे चलने का   तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
मैं फिर भी पार कर लूँगा, सहारों पास मत आओ  |

मेरी खामोशियाँ बोलेंगी, और वो बात सुन लेगा,
जो कहना है मैं कह दूंगा, इशारों पास मत आओ |

कई सदियों तलक मैंने भी, काटे चाँद के चक्कर ,
बड़ी मुश्किल से ठहरा हूँ, सितारों पास मत आओ |

महज़ 'आनंद' की खातिर , गंवाओ मत सुकूँ अपना,
न चलना साथ हो मुमकिन, तो यारों पास मत आओ |


  -आनंद द्विवेदी ३०/०९/२०११


6 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे रस्सी पे चलने का, तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
    मैं फिर भी पार कर लूँगा, सहारों पास मत आओ

    वाह ..बहुत खूब कहा है ..।

    जवाब देंहटाएं
  2. मुझे रस्सी पे चलने का, तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
    मैं फिर भी पार कर लूँगा, सहारों पास मत आओ |

    मेरी खामोशियाँ बोलेंगी, और वो बात सुन लेगा,
    जो कहना है मैं कह दूंगा, इशारों पास मत आओ |
    Kya gazab kee panktiyan hain!

    जवाब देंहटाएं
  3. महज़ 'आनंद' की खातिर , गंवाओ मत सुकूँ अपना,
    न चलना साथ हो मुमकिन, तो यारों पास मत आओ ||
    bhaut hi sundar gazal....

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत गज़ल .

    मेरी खामोशियाँ बोलेंगी, और वो बात सुन लेगा,
    जो कहना है मैं कह दूंगा, इशारों पास मत आओ |

    कई सदियों तलक मैंने भी, काटे चाँद के चक्कर ,
    बड़ी मुश्किल से ठहरा हूँ, सितारों पास मत आओ |

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या कहूँ......??

    खूबसूरत सी ग़ज़ल...!

    बस एहसास ही भरे हैं....



    "जुबाँ चुप है,नज़र खामोश लेकिन दिल कहे कुछ-कुछ!

    समझना है तो समझो तुम मगर नज़दीक मत आओ....!!

    ***punam***
    "bas yun...hi "

    जवाब देंहटाएं