फाँस बनकर गले में अटकी हुई है जिंदगी ,
कशमकश के शहर में भटकी हुई है जिंदगी !
वो जो पत्थर सामने है, वफ़ा का है प्यार का,
उसी पर खूब जोर से पटकी हुई है जिंदगी !
अपने टूटे पाँव लेकर जो पड़ी है खाट पर ,
उनके दर से धूल सी झटकी हुई है जिंदगी !
सड़क पर की धूप से बेचैन होकर, भागकर
छत में पंखे से यहाँ लटकी हुई है जिंदगी !
छटपटाता हुआ एक 'आनंद' इसमें कैद है ,
दर्द से हर जोड़ पर चटकी हुई है जिंदगी !!
--आनंद द्विवेदी १९/०२/२०११