फिर वही दिन आ गये, फिर गुनगुनाना आ गया,
जाते जाते लौटकर , मौसम सुहाना आ गया |
फिर किसी रुखसार की सुर्खी हवा में घुल गयी,
फिर मुझे तनहाइयों में मुस्कराना आ गया |
सबकी नजरों से छुपाकर, उसने देखा फिर मुझे,
फिर मेरे मदहोश होने का ज़माना आ गया |
शोखियों की बात हो या सादगी की बात हो,
हर अदा से अब उसे बिजली गिराना आ गया |
अब नही पढ़ पाइयेगा, उसकी रंगत देखकर,
उस हसीं चेहरे को भी , बातें छुपाना आगया |
मेरे दिलवर से मुझे भी , कुछ हुनर ऐसा मिला,
आग के दरिया से मुझको, पार जाना आगया |
जिंदगी 'आनंद' की, अब भी वही है दोस्तों,
हाँ मगर उसको, उसे जन्नत बनाना आ गया |
- आनंद द्विवेदी ०६/१०/२०११