गुरुवार, 7 जुलाई 2011

उसने सब लाजवाब भेजा है |





उसने ख़त का जबाब भेजा है ,
हाय क्या इंकलाब भेजा है |

प्यार में डूबी ग़ज़ल भेजी है 
एक प्यारा गुलाब भेजा है !

नींद आँखों से लूटकर उसने 
कितना मदहोश ख्वाब भेजा है |

दिन को, खुशबू चमन की भेजी है 
रात को, माहताब भेजा है  |

राह चलते हिना महकती है 
उसने ऐसा शबाब भेजा है |

अपने 'आनंद' के लिए यारों 
उसने सब लाज़बाब  भेजा है |

आनंद द्विवेदी ०५/०७/२०११ 

बुधवार, 6 जुलाई 2011

बोलो कुछ तो बोलो सजनी.....



मैं आज जगत का स्वामी हूँ
तुम बाहुपाश में, मेरे हो,
सहसा इस प्रकृति प्रियतमा ने
ज्यों सुन्दर चित्र उकेरें हों ,
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
क्षण लोगी या जीवन लोगी
                   बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                   दिल लोगी या धड़कन लोगी

जो स्वप्नों से हो प्यार तुम्हें
तो नभ ले लो, उडगन ले लो 
हो स्वप्नों का विस्तार प्रिये
तुम मन ले लो, मोहन ले लो
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
दृग लोगी या चितवन लोगी
                बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                दिल लोगी या धड़कन लोगी

तुम शुभ्र चांदनी, चंदा की
खुशबू जैसे, चन्दन वन की
तुम दशों दिशाओं की मलिका
इच्छित हो मेरे जीवन की
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
मधु लोगी, या मधुवन लोगी
                बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                दिल लोगी या धड़कन लोगी ||

   -आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११ 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो !



खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये |

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये  |

जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये  |

वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये |

मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये !

मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |

उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने  आये   |

यारों 'आनंद' से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये  ||

   -आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११