वो किसी फ़क़ीर की दुआ सा होता है
ठिठुरन भरी सर्दी में अलाव की आँच सा..
इतना ताक़त से लबरेज़
कि उसी से क़ोकहन अपनी शीरी के लिए काट देता है पहाड़
और मुलायम इतना
कि जैसे हवा में उड़ता हुआ कपास का फूल,
कन्नौज के इत्र की खुशबू सा अहसास लिए
वह
दबे पाँव उतरता है एक एक सीढ़ी
पहले आँखों में एक ख़्वाब की तरह
फिर सारे जिस्म में माँ के दूध की तरह
जाँ में उतरता है वो महबूब का तसव्वुर बनकर
और फिर रूह में वंशी की तान की तरह
देखते ही देखते
बदल जाती है ये समूची दुनिया
इश्क़ मुकम्मल कर देता है इंसान को
वो वह नहीं रह जाता
जो वो पहले था ।
बहुत नर्म मिज़ाज़
सलीकेदार,
राह चलते खुशियाँ बाँटने वाला
ख़ुशबू छलकाता हुआ, बेवजह डबडबाई आँखों वाला,
ऐसा कोई शख्स कभी मिले
तो जान लेना उसे प्रेम में
और करना उसके महबूब के लिए
ढेर सारी दुआएँ !
ये दुआ किसी किसी को नसीब होती है
ये ख़ुशबू एक खास इत्र में ही होती है
जिसे चुनता है ईश्वर स्वयं !
© आनंद