सोमवार, 26 मार्च 2012

एक माँ का दर्द



एक 

माधव !
तुमने किसी माँ को 
रोते हुए देखा है ....
तुमको कैसा लगता है ?
मुझे तो अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी नहीं कह सकता मैं 
अच्छा छोड़ो ..
ये बताओ 
क्या तुमने किसी बेटी को 
रोते हुए देखा है ?
मैंने तो देखा है
तुमने भी जरूर देखा होगा
क्योंकि कई बार
मुझे भी ऐसा लगता है  कि ..
तुम ही सबके पिता हो
परम पिता !
न जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे 
और खास बात ये कि.... मैंने 
जब जब उसे रोते हुए देखा 
तब तब 
मैंने तुमको भी देखा 
हम दोनों लाचार
वैसे एक राज की बात बताऊँ ??
जब जब मैं तुमको लाचार देखता हूँ ना 
मेरा मन करता है कि 
मैं  जोर जोर से नाचूँ...........!


दो 

मैं सुदामा नहीं हूँ !
और मुझे ऐसा कोई मुगालता भी नहीं है 
फिर भी 
एक पोटली है मेरे पास ...
अरे कांख में दबी हुई नहीं 
इधर सर पे रखी हुई ...
मेरी पोटली में
बहुत सारी चीजें हैं ...जो तुमने
दिया था मुझे
देखो ना 
इसमें है ...
नदी किनारे की एक जादुई शाम
तपते जून की एक दोपहर
तारों भरी  कुछ सर्द रातें (जब चाँद भी अच्छा लगता था )
दीवानों की तरह घुमड़े हुए कुछ बादल 
बच्चों की तरह भीगता
और 
पागलों की तरह खुश होता हुआ मैं !
मेरा वो इंतज़ार
(अब जिसके आगे तुमने 'मूक' और पीछे 'अनंत काल के लिए' लिख दिया है )
देखना ...
एक छोटी सी गांठ में बंधा हुआ 
थोड़ा सा 
भरोसा भी होगा ...
इनमे से एक भी चीज़ 
मेरे काम की नहीं है 
इन्हें वापस ले लो (तुभ्यमेव समर्पयामि)
इन सबके बदले में
मुझे एक चीज़ चाहिए 
और वो ये कि.... 
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
हो सके तो  
मुझे मुक्त करो अब 
नहीं तो जय राम जी की !

आनंद 
२६-०३-२०१२