सोमवार, 18 अप्रैल 2011

वादा कर लूँगा मगर साफ़ मुकर जाऊँगा






तेरे नजदीक से होकर..... जो गुजर जाऊँगा ,
कह नहीं सकता जियूँगा, कि मैं मर  जाऊंगा !

उनका आगाज़ ही लगता है क़यामत मुझको, 
उनको डर था कि मैं,  अंजाम से डर जाऊँगा  !

मुझको मयख्वार बनाती हुई, नज़रों वाले ..,
मैक़दे बंद ना  करना  , मैं  किधर जाऊँगा  !

तेरे दर से मुझे ,  .मंजिल का गुमाँ होता है ,
मैं जरा देर भी ठहरा,... तो ठहर जाऊँगा  !

इक  हसीं ख्वाब के जैसा,  वजूद है मेरा ,
दो घडी पलकों पे रह लूँगा उतर  जाऊँगा !

मुझपे 'आनंद' की सोहबत का असर है यारों,
वादा कर लूँगा मगर,  साफ़ मुकर जाऊँगा !!

   ---आनंद द्विवेदी १८-०४-२०११