अंदर दीपक बुझा हुआ है पर बाहर दीवाली है
ऊपर से सब हरा भरा है अंदर खाली खाली है
मौसम का रुख देख देख कर मुझको ऐसा लगता है
जिसमें चोट सताती है, वो पुरवा चलने वाली है
मेरा मुझमे नहीं रहा कुछ, अच्छा बुरा उसी का है
हम जिस सावन के अंधे हैं ये उसकी हरियाली है
मुझको तो कुछ पत्थर भी अब इंसानों से लगते हैं
इंसानों में भी पत्थर की नस्लें आने वाली हैं
कितने दिन 'आनंद' रहेगा तू बेगानी बस्ती में
अपनेपन की परछाई भी आँख चुराने वाली है
-आनंद
ऊपर से सब हरा भरा है अंदर खाली खाली है
मौसम का रुख देख देख कर मुझको ऐसा लगता है
जिसमें चोट सताती है, वो पुरवा चलने वाली है
मेरा मुझमे नहीं रहा कुछ, अच्छा बुरा उसी का है
हम जिस सावन के अंधे हैं ये उसकी हरियाली है
मुझको तो कुछ पत्थर भी अब इंसानों से लगते हैं
इंसानों में भी पत्थर की नस्लें आने वाली हैं
कितने दिन 'आनंद' रहेगा तू बेगानी बस्ती में
अपनेपन की परछाई भी आँख चुराने वाली है
-आनंद