फाग
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कल से कुछ साथी बार बार इस फाग का जिक्र कर रहे हैं लगभग 25 वर्ष हो गए इसको पूरे मनोयोग से गाये हुए अब सब भूल गया हूँ फिर भी कोशिश करता हूँ अपनी प्राचीन श्रुति परंपरा को..
मन बसै म्वार वृंदावन मा
मन बसै म्वार वृंदावन मा ।
वृंदावन बेली चंप-चमेली
गुलदाउदी गुलाबन मा
गेंदा गुलमेंहदी गुलाबास
गुलखैरा फूल हजारन मा
कदली कदंब अमरूद तूत
फूले रसाल सब शाखन मा
भँवरा गुलज़ार विहार करैं
रस लेहैं भला रस लेहैं
रस लेहैं फूल फल पातन मा।
मन बसै म्वार वृंदावन मा।
वृंदावन के बन बागन मा
लटकैं झटकैं फल लागत
दाक छुहारन मा
फूली फुलवारी लौंग सुपारी
व्यापारी व्यापारन मा
मालिन के लड़के तोड़ें तड़के
बेचैं हाट बजारन मा
सौदा करले ओ सुमुखि सुंदरी
जउन होय जाके मन मा।
मन बसै म्वार वृंदावन मा।
बहै पवन मंद शीतल सुगंध
सुख देत सदा सबके मन मा
इत रंग रंगीली औ छोकरा
पिचकारी हनै पिचकारन मा
उत खेलत फाग मदनमोहन
मुरली ध्वनि उठत मृदंगन मा
ऐसे घनश्याम भयो बृज मा
होरी ख्यालैं भला होरी ख्यालैं
होरी ख्यालैं श्याम जब कुंजन मा
मन बसै म्वार वृंदावन मा।
मोहि नीका भला मोहि नीका
मोहि नीका न लागै गोकुल मा
मन बसै म्वार वृंदावन मा।