मेरा उठना
मेरा बैठना
मेरा बोलना
मेरी मौन
मेरा हंसना
मेरा रोना
सब
तेरी ही तो अभिव्क्ति हैमेरा सारा जीवन
तेरा ही एक गीत है माधव !
इसे मैं जितना
शांत
और शांत होकर सुनता हूँ
तू उतना ही मेरे अंदर
गहरे
और गहरे
नाचने लगता है !!
लोग कहते हैं ....कि
तू
बहुत विराट है ,
"रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्माण्ड "
उफ्फ्फ
मैं तो डर ही जाऊंगा
मेरे से
इतना कहाँ संभलेगा
वैसे भी
मुझे इस तरह कि बातें
जरा भी अच्छी नहीं लगती
मैं जानता हूँ .... कि मैं
तुझे समझ नहीं सकता
(समझना चाहता भी नहीं )
पर मैं
तुझे जी सकता हूँ
जी रहा हूँ मैं
तुझे !
ऐ
इधर देख ... वैसे ही प्यार भर कर
और कर दे ...पागल
अब होश में रहने का
जरा भी मन नहीं !
-आनंद द्विवेदी ९/१२/२०११