बेंच डाला घर किराएदार ने
रूह तक कब्ज़ा किया व्यापार ने
छटपटाता वक़्त, बेपरवाह हम
हाल ऐसा कर दिया बाज़ार ने
ज़िंदगी का इम्तहाँ मैं पास था
फेल मुझको कर दिया रफ़्तार ने
दूरियों की आँच यूँ भी कम न थी
आग में घी कर दिया सरकार ने
लज़्ज़त-ए-नाराजगी भी खूब है
जब कभी दिल से मनाया यार ने
अब खुशी में भी कहाँ 'आनंद' है
ठग लिया जबसे भले व्यवहार ने
शुक्र बन्दे का ख़ुदा का शुक्रिया
जो किया अच्छा किया संसार ने
© आनंद