सुहानी राह है, हम हैं, सफर है
यहाँ से ज़िंदगी हद्दे नज़र है
मुहब्बत नाम की एक शै मिली है
मगर वो इस जहाँ से बेख़बर है
महकते गेसुओं ने ख़त लिखा है
मुसाफिर, अब ये दूरी मुख़्तसर है
ये मस्ती चाल की ये लड़खड़ाहट
ये मयख़ाना नहीं उसकी नज़र है
हमारे ग़म, हमीं को बेंच देगा
यही बाज़ार का असली हुनर है
कबीरों की न अब कोई सुनेगा
सियासत का बड़ा गहरा असर है
कहीं आनंद मिलता हो तो ले लें
ये बस्ती तो प्रदूषण है ज़हर है ।
© आनंद