सोमवार, 25 अप्रैल 2011

कोई शिकवा ही नहीं उसको मुकद्दर के लिये




दो घड़ी भी न मयस्सर हुई ,.. बसर के लिए 
ख्वाब लेकर के मैं आया था उम्र भर के लिए !

कौन जाने कहाँ से, ...  राह दिखादे  दे कोई,
रोज बन-ठन के निकलता हूँ तेरे दर के लिए !

तेरी महफ़िल को,  उजालों की दुआ देता हूँ , 
मैं ही  माकूल नहीं हूँ, ....तेरे शहर के लिए  !

रास्ते  भर,   तेरी यादें ही  काम  आनी  हैं ,
घर में माँ होती तो देती भी कुछ सफ़र के लिए !

दिल को समझाना भी मुस्किल का सबब होता है 
आज फिर जोर से धड़का है  इक नज़र के लिए  !

सिर्फ अहसास  नहीं  हूँ,  वजूद  है  मेरा  ,
मैं बड़े काम का बंदा हूँ किसी घर के लिए  !

अजीब शख्स है 'आनंद', ...फकीरों की तरह ,
कोई शिकवा ही नहीं  उसको मुकद्दर के लिए !

    ---आनंद द्विवेदी २५-०४-२०११