दो घड़ी भी न मयस्सर हुई ,.. बसर के लिए
ख्वाब लेकर के मैं आया था उम्र भर के लिए !
कौन जाने कहाँ से, ... राह दिखादे दे कोई,
रोज बन-ठन के निकलता हूँ तेरे दर के लिए !
तेरी महफ़िल को, उजालों की दुआ देता हूँ ,
मैं ही माकूल नहीं हूँ, ....तेरे शहर के लिए !
रास्ते भर, तेरी यादें ही काम आनी हैं ,
घर में माँ होती तो देती भी कुछ सफ़र के लिए !
दिल को समझाना भी मुस्किल का सबब होता है
आज फिर जोर से धड़का है इक नज़र के लिए !
सिर्फ अहसास नहीं हूँ, वजूद है मेरा ,
मैं बड़े काम का बंदा हूँ किसी घर के लिए !
अजीब शख्स है 'आनंद', ...फकीरों की तरह ,
कोई शिकवा ही नहीं उसको मुकद्दर के लिए !
---आनंद द्विवेदी २५-०४-२०११