शनिवार, 16 सितंबर 2017

भूख

सूरज साँझ की मुनादी कर आगे बढ़ गया
घोसलों की ओर उड़ चले पंक्षी
रसोई के धुएँ से लाल हो उठी आँखें लिए
चौखट से बाहर निहारती है एक स्त्री
जिंदगी का बोझ और फावड़ा
बाहर रख देता है पति
चौके में पाटे पर बैठा है अभावग्रस्त प्रेम
होरी और धनिया
अब नहीं बनते किसी कहानी के पात्र

देह
रोग से भरी है
देश तरक्की से
और प्रेम भरा है सूफ़ियाने से
भूख के लिए नहीं है कोई जगह
प्रेम में भी !

© आनंद