सोमवार, 29 अगस्त 2016

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है
ये ग़म मुझे उम्मीद लगाने से मिला है

जलने का तज़ुर्बा भी बड़ी चीज़ है यारों
मुझको हवन में हाथ जलाने से मिला है

किसको फ़िकर है दर्द की, सब पूछते हैं ये
किसकी गली से किसके ठिकाने से मिला है

रिसता न गर लहू तो कोई जान न पाता
क्या ज़ख्म लिए कौन ज़माने से मिला है

बौछार दुआओं की रही मुँह के सामने
ये घाव जरा पीठ घुमाने से  मिला है

शिद्दत से पुकारो जिसे वो शख्स बारहा 
मिलने की आरजू ही मिटाने से मिला है

'आनंद' शबे-ग़म से नसीमे-सहर को चल
मौका तुझे ये नींद न आने से मिला है  !

-आनंद