रविवार, 7 अगस्त 2011

मई की क्रांति


तुम ..

तुम
कैसा अहसास हो
जहाँ मन ऐसे लगता है जैसे
समाधि
या फिर कोई नशा
जिसे पीकर कभी भी
होश में आने का मन न हो ..
या फिर कोई जहर
जिसे पीकर हमेशा के लिए
मेरी मौत हो गई है
खुद के अन्दर
और तुम बन बैठे हो
अहिस्ता से
मेरा वजूद !

मैं 

मैं
वो हूँ ही नही
जो मुझे सभी
समझते हैं
जानते हैं
मैं केवल वो हूँ
जो तुम समझती हो
जानती हो
मानती हो
वही हूँ मैं
वही हो गया हूँ  !!


मई की क्रांति 


मेरे लिए
उसका प्यार
उस
क्रांति से भी ज्यादा है...
सत्ता और व्यवस्था की छोड़ो
मेरा तो
जीन बदल गया है
अब
कई जन्मों तक
मैं
केवल प्रेम को ही
जन्म दूंगा ||

समझदार !

बड़ी जतन से
बर्षों में
तैयार होता है
एक
समझदार आदमी !
अन्दर की कोशिकाओं तक
निर्माण होता है 'मैं' का 'अहम्' का
कहना आसान है
मिटाना कठिन ....
लगभग आत्महत्या जैसा
इसीलिये
समझदार आदमी
हमेशा दूर भागते हैं
प्रेम से ||

प्रेम

गली गली में
उग आये है
उपदेशक !
चरणबद्ध तरीके से
सिखाया जाएगा
त्रुटिहीन  प्रेम ||


शबरी की कथा  !

कह दो
अंतिम क्षण में
साथ  रहने के लिए
या फिर मैं
तुम्हारे साथ के क्षण को ही
अंतिम बना लूं
कानों के ऊपर के
सफ़ेद बाल
सारे शरीर में फ़ैल रहे हैं
ऐसे में  मुझे
'शबरी' की कथा
बहुत याद आती है  !!

छोटे लोग !

कितनी
रंगीन महफ़िल थी यार !
शायरी और शबाब का दौर..
मगर इसमें भी
'उस' साले ने
आलू, प्याज
रसोई गैस के बढ़े दाम ....घुसेड़ दिए
उफ्फ्फ
ये छोटे लोग न
कभी बड़ा
सोंच ही नही सकते ||

आनन्द द्विवेदी १४-०७-२०११

मेरा सच !


जैसे पानी का एक बुलबुला  ....
सपना तो
बिलकुल भी नहीं था
था तो हकीकत ही ...
मगर
इन  कमबख्त बुलबुलों की
उम्र ही कितनी होती है
कुछ तो आवाज़  भी नहीं करते ....
मेरा प्यार....
खामोश  बुलबुला  तो नहीं था न ?

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लगता ही नही
मैंने
जन्नत नही देखी
याकि मैं
इस धरती का
रहने वाला हूँ,
तुमको पाकर
लगता ही नही
कि
मुझमे कुछ कमी है  !



आनन्द द्विवेदी १३-१४/०७/२०११