सोमवार, 28 मार्च 2011

एक क्षण के लिए ...


मुझे आज तुझसे
सच में प्यार हो गया है
हमेशा ही पास से कतराकर
निकल जाने वाली ..
मेरे आंसुओं से ही
खुद को गुलजार रखने वाली ..
मेरी बेबसी पर जश्न ...
और मेरी जरा सी भूल पर
आसमान सर पर उठा लेने वाली ..
मेरी हर चाहत को  कुचलकर
अट्टहास करने वाली
ऐ मेरी बेशर्म जिंदगी
मुझे आज तुझसे
सच में प्यार हो गया है...


ये प्यार होता ही है ऐसा
जब होता है तब 
नहीं देखता दोस्त और दुश्मन
कोई बुराई नजर ही नहीं आती
अँधा कहीं का !
नहीं सुनता किसी और की आवाज़
ताने, व्यंग , षड्यंत्रों की सरगोशियाँ
कुछ बुरा सुनाई ही नहीं देता इसको
बहरा कहीं का !
चुपचाप सह लेता है
हर जुल्म ज़माने का भी और तेरा भी
अपने में ही खोया
एक बार भी उफ़ नहीं करता
गूंगा कहीं का ...........
पर एक बात कहूँ? 
ऐसा जब भी होता है
जीवन  का वो लम्हा
उस सारे जीवन से
और ...
सदियों से भी  ज्यादा कीमती  होता है
क्योंकि उस एक क्षण
श्रृष्टि होती है...
अपने सबसे सुन्दरतम रूप में !     
     
  --आनंद द्विवेदी  २८/०३/२०११