सोमवार, 20 अगस्त 2012

जब भी मिलता है, बहारों से मिला देता है





हाल दिल का, वो इशारों से बता देता है,
जब भी मिलता है, बहारों से मिला देता है !

किस नज़र देखता है हाय  देखने भर से ,
मेरी नज़रों को नजारों से मिला देता है !          

जब भी आगोश में लेता है तो दरिया बनकर,
प्यास को, गंगा की धारों से मिला देता है  !

जब कभी मुझको वो पाता है जरा भी तनहा,
अपनी यादों के,   सहारों से मिला देता है  !

कितना भी तेज़  हो तूफान वो मांझी बनकर ,
मेरी कश्ती को,   किनारों से मिला देता है  !

हाँ ये सच है की खुदा, खुद नहीं करता कुछ भी,
बस वो 'आनंद' को,  यारों से मिला देता है    !!

           -आनंद द्विवेदी  २३-०५-२०११