लम्हा लम्हा करके लम्हा छूट गया
क़तरा क़तरा एक समंदर सूख गया !
क़तरा क़तरा एक समंदर सूख गया !
और हादसों के डर से, वो तनहा था ,
तनहा तनहा रहकर भी तो टूट गया !
मैं कहता था न, ज्यादा सपने मत बुन,
वही हुआ , सपनों का दर्पण टूट गया !
फिर कोई मासूम सवाल न कर बैठे ,
बस इस डर से ही, मैं उससे रूठ गया !
मेरी फाकाकशी सभी को मालूम थी ,
फिर भी कोई आया मुझको लूट गया
उसकी बातों से तो ऐसा लगता था ,
जैसे कोई दिल का छाला फूट गया !
जो 'आनंद' नज़र आता है, झूठा है ,
उसका सच तो कब का पीछे छूट गया !
--आनंद द्विवेदी ०९/०४/२०११