लम्हा लम्हा करके लम्हा छूट गया
क़तरा क़तरा एक समंदर सूख गया !
क़तरा क़तरा एक समंदर सूख गया !
और हादसों के डर से, वो तनहा था ,
तनहा तनहा रहकर भी तो टूट गया !
मैं कहता था न, ज्यादा सपने मत बुन,
वही हुआ , सपनों का दर्पण टूट गया !
फिर कोई मासूम सवाल न कर बैठे ,
बस इस डर से ही, मैं उससे रूठ गया !
मेरी फाकाकशी सभी को मालूम थी ,
फिर भी कोई आया मुझको लूट गया
उसकी बातों से तो ऐसा लगता था ,
जैसे कोई दिल का छाला फूट गया !
जो 'आनंद' नज़र आता है, झूठा है ,
उसका सच तो कब का पीछे छूट गया !
--आनंद द्विवेदी ०९/०४/२०११
मैं कहता था न, ज्यादा सपने मत बुन,
जवाब देंहटाएंवही हुआ , सपनों का भांडा फूट गया !
सपने तो हकीकत की बानगी होते हैं , सपनों का कैसा भांडा .... सपने टूटे तो नए सपने बुनो , आसमान पाने का ख्वाब बनाओ, सूरज मुट्ठी में होगा
लम्हा लम्हा करके लम्हा छूट गया
जवाब देंहटाएंकतरा कतरा एक समंदर सूख गया !
और हादसों के डर से, वो तनहा था ,
तनहा तनहा रहकर भी तो टूट गया !
मैं कहता था न, ज्यादा सपने मत बुन,
वही हुआ , सपनों का भांडा फूट गया
Kya kamaal kee rachana hai! Kin,kin panktiyon ko dohraun?
ओये होये क्या गज़ब के शेर हैं । हर शेर हकीकत से मिलवाता है……………शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति...गज़ब के शेर ...
जवाब देंहटाएंउसकी बातों से तो ऐसा लगता था ,
जवाब देंहटाएंजैसे कोई दिल का छाला फूट गया !
बहुत खूबसूरत गज़ल
…शानदार प्रस्तुति। .........."ला-जवाब" जबर्दस्त!!
जवाब देंहटाएंपहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंफिर कोई मासूम सवाल न कर बैठे
जवाब देंहटाएंबस इस डर से ही,मैं उससे रूठ गया
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द्विवेदी जी ,
अच्छे भावों की रचना......हर शेर उम्दा.