फिर एक शाम उदासी में ढल न जाये कहीं |
आ भी जाओ ये हसीं वक्त टल न जाए कहीं
मेरे दिल में जो बसा है वो, जल न जाये कहीं |
नज़र में ख्वाब पले हैं, औ नींद गायब है ,
आँखों-आँखों तमाम शब, निकल न जाये कहीं |
उन्हें ये जिद कि वो मौजों के साथ खेलेंगे,
मुझे ये डर कि समंदर, उबल न जाये कहीं |
आपकी बज़्म में आते हुए डर जाता हूँ,
हमारे प्यार का किस्सा उछल न जाये कहीं |
जानेजां शोखियाँ नज़रों से लुटाओ ऐसी,
रिंद का रिंद रहे वो संभल न जाये कहीं |
रुखसती के वो सभी पल नज़र में कौंध गये,
अबके बिछुड़े तो मेरा दम निकल न जाए कहीं |
रूह से मिल गया ' आनंद ' जब से ऐ यारों
लोग कहते हैं ये इन्सां बदल न जाये कहीं |
- आनंद द्विवेदी १३-०८-२०११