राह अनजान है, तूफां भी डराता है मुझे,
मैं तो गिर जाऊं तेरा प्यार बचाता है मुझे |
घेर लेते हैं अँधेरे, निगाह को जब भी ,
चिराग़ बनके, कोई राह दिखाता है मुझे |
जब भी होता है गिला मुझको, मुकद्दर से मेरे,
दिल की दुनिया में कोई पास बुलाता है मुझे |
जिस तरफ देखूं, जहाँ जाऊं, तेरा ही चेहरा,
हाय रे 'इश्क', अजब रंग दिखाता है मुझे |
जिक्र जब तेरा उठे , कैसे सम्भालूँ खुद को,
दोस्त कहते हैं कि, तू नाच नचाता है मुझे |
प्यार करता है मुझे बेपनाह वो जालिम,
दिन में दो चार दफे रोज़ रुलाता है मुझे |
वो न मिलता तो भला कौन समझता मुझको,
प्यार उसका ही तो 'आनंद' बनाता है मुझे ||
-आनंद द्विवेदी २४-०९-२०११