सुबह से..
एक सादा पन्ना
नाच रहा है
आँखों के सामनेरात में
इसी पर मैंने
रंग बिरंगी स्याही से
सब कुछ तो लिख दिया था ...
मैंने लिखा था
तुम्हारी मुस्कान
तुम्हारी शराफत
तुम्हारा प्यार
तुम्हारी लापरवाही
तुम्हारी इबादत
तुमको
मैंने लिखा था
अपनी आरजू
अपनी गिड़गिड़ाहटें
अपनी बेबसी ...
अपना जुजून
वो भी सब
जो आज तक मैंने
तुमको नहीं बताया था
खुद से भी ..
चुराए हुए था जो राज ...
पर सुबह...
देखा तो...
पन्ना तो सादा ही था ..
निगोड़े सपने
रात में भी तंग करते हैं
और दिन में भी !
-आनंद द्विवेदी
अप्रैल १४, २०११