तेरी याद चली आयी या मौसम की शैतानी है
ऐसा क्यों लगता है जैसे फिर से शाम सुहानी है
तेरी यादों की दुनिया भी जालिम तेरे जैसी है
पल भर में अपनी लगती है पल भर में बेगानी है
तेरे पिंजरे का ये पंक्षी कब का उड़ना भूल गया
धड़कन तो चलती रहनी है जब तक दाना पानी है
तेरी जिन राहों पर मैंने बंदनवार सजाये थे
वो राहें तेरे क़दमों की आज तलक दीवानी हैं
तुझको यादों में आना हो या फिर आँख छलकना हो
मेरे साथ हमेशा सब की चल जाती मनमानी है
या तेरी यादों में डूबूं या जमुना में डूब मरूं
जोड़-घटाकर मेरे हिस्से दो ही बातें आनी हैं
मेरी आती-जाती सांसें पिया मिलन में बाधक हैं
सोंच रहा हूँ आखिर कैसे ये दीवार गिरानी है
कल 'आनंद' मिला था मुझको गुमसुम खोया-खोया सा
कुछ पूछो तो हंस पड़ता है, पर आँखों में पानी है
- आनंद द्विवेदी १६-०१-२०१२