अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा,
इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |
कैसे गुमान होता मुझे अपने क़त्ल का,
जब मैं किसी के ख़्वाब का क़ातिल नही रहा |
जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
अय जिंदगी, मैं तेरे मुक़ाबिल नही रहा |
मँझधार ही नसीब है, या पार लगूंगा ?
हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |
दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |
'आनंद' मिट गया औ भनक भी नही लगी,
पहले तो मैं इतना कभी गाफ़िल नहीं रहा !
आनंद द्विवेदी
३० मार्च २०१२