प्रतीक्षालय में होना
सुखद है,
बनिस्बत
सुखद है,
बनिस्बत
होने के
किसी प्रतीक्षा में ..
हजारों चेहरे
और
किसी प्रतीक्षा में ..
हजारों चेहरे
और
उनपर से गुजरते हुए
लाखों भाव ..
किसी की आँख में
किसी की आँख में
संतोष
लगता है
लगता है
किसी अपने से
मिलकर आ रहा हो
वहीं
वहीं
किसी की आँखों में
व्यग्रता
जैसे
जैसे
उसे देर हो रही हो
कहीं जाने की ,
एक सुरूर एक दर्प
कि कर रहा है एक सुरूर एक दर्प
कोई इंतजार ...
सामने
सामने
एक जोड़ा बैठा है ...
दीन दुनिया से
दीन दुनिया से
बेखबर
कहीं जाने की
कहीं जाने की
कोई जल्दी नहीं
कोई व्यग्रता नहीं
बस दो जोड़ी आँखें
उनमे चमकते जुगुनू
कुलबुलाती शरारतें
छलकता प्यार
न पैरों में
कोई व्यग्रता नहीं
बस दो जोड़ी आँखें
उनमे चमकते जुगुनू
कुलबुलाती शरारतें
छलकता प्यार
न पैरों में
अतीत के बंधन
न सर पर
न सर पर
भविष्य का भार
कितना सुखद है
जो मेरे पास है
उसे इस क्षण में कितना सुखद है
जो मेरे पास है
पूरी तन्मयता से जीना ...!
वो कोने की सीट पर
एक लड़की बैठी है
अकेली लड़की
जो साफ-साफ तो नहीं
वो कोने की सीट पर
एक लड़की बैठी है
अकेली लड़की
जो साफ-साफ तो नहीं
दिखाई दे रही
मगर
उसकी आँखों का
मगर
उसकी आँखों का
सूनापन
चमक रहा है
चमक रहा है
दूर से ही ..
सांसें भी
सांसें भी
साफ़ सुनाई दे रही हैं.
इतने शोर के बावजूद
सर्द आहें छोडती हुई
इतने शोर के बावजूद
सर्द आहें छोडती हुई
सांसें
शायद
खोने पाने के इस खेल में
खो दिया है
उसने कुछ !
और मेरे ठीक सामने
ये अकेले बुजुर्गवार...
जाने क्या ढूंढ रहे हैं !
हर आते-जाते
शायद
खोने पाने के इस खेल में
खो दिया है
उसने कुछ !
और मेरे ठीक सामने
ये अकेले बुजुर्गवार...
जाने क्या ढूंढ रहे हैं !
हर आते-जाते
चेहरे में
शायद वही चेहरा
जिसे ये
शायद वही चेहरा
जिसे ये
जिगर का टुकड़ा
कहते थे
जो छोड़ गया है ....
इनको इस अंतहीन
प्रतीक्षालय की
जो छोड़ गया है ....
इनको इस अंतहीन
प्रतीक्षालय की
सीढ़ियों तक ..
सोंचता हूँ
कितना सब्र होता है
इन बुजुर्गों में
कभी उम्मीद ही नहीं छोड़ते...!
अचानक
मैं ढूँढने लगता हूँ
सोंचता हूँ
कितना सब्र होता है
इन बुजुर्गों में
कभी उम्मीद ही नहीं छोड़ते...!
अचानक
मैं ढूँढने लगता हूँ
तुमको ......!!
मगर
तुम नहीं हो
मगर
तुम नहीं हो
इस प्रतीक्षालय में
तुम्हें नहीं है
किसी की प्रतीक्षा
शायद तुमने पा लिया है
अपना गंतव्य
मुक्त हो गए तुम
तुम्हें नहीं है
किसी की प्रतीक्षा
शायद तुमने पा लिया है
अपना गंतव्य
मुक्त हो गए तुम
फिर भी
सोंचता हूँ
शायद
दिख जाये
तुम जैसा ही कोई
इसी कोशिश में
हर चेहरा पढ़ डाला मैंने
जीवंत चेहरे
खिलखिलाते चेहरे
मुर्दा चेहरे
व्यापारी चेहरे
खुर्राट चेहरे
मासूम चेहरे
थके चेहरे
उफ़..!!!!जीवंत चेहरे
खिलखिलाते चेहरे
मुर्दा चेहरे
व्यापारी चेहरे
खुर्राट चेहरे
मासूम चेहरे
थके चेहरे
कुछ न कुछ कमी
क्यों निकल आती है सबमे
क्यों नहीं होता कोई
तुम जैसा ....!
परिपूर्ण ...!!क्यों निकल आती है सबमे
क्यों नहीं होता कोई
तुम जैसा ....!
अचानक
एक उद्घोषणा
गाड़ी संख्या १२७८६
नयी दिल्ली से पुरी जाने वाली
नीलांचल एक्सप्रेस गाड़ी
अनिश्चितकालीन विलम्ब से है .....
हथौड़े की तरह
गाड़ी संख्या १२७८६
नयी दिल्ली से पुरी जाने वाली
नीलांचल एक्सप्रेस गाड़ी
अनिश्चितकालीन विलम्ब से है .....
हथौड़े की तरह
लगता है
यह शब्द
अनिश्चितकालीन ...
तुम्हें शायद पता हो
यह शब्द
अनिश्चितकालीन ...
तुम्हें शायद पता हो
या न हो
कि
प्रतीक्षा जब
अनिश्चित कालीन
कि
प्रतीक्षा जब
अनिश्चित कालीन
तब
कितना दर्द देती है .....!!
आनंद द्विवेदी २७/०५/२०११
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से