मंगलवार, 10 अक्टूबर 2017

तड़प उठता हूँ

एक भी शेर सुनाने से तड़प उठता हूँ
अब ये सौगात लुटाने से तड़प उठता हूँ

मेरा हर ज़ख्म किसी यार की निशानी है
एक भी दाग़ मिटाने से तड़प उठता हूँ

तुम किसी चोट पे मरहम लगा के हटती हो
मैं किसी और बहाने से तड़प उठता हूँ

उम्र जिस ख़्वाब की ताबीर बनाते गुजरी
मैं वही ख़्वाब मिटाने से तड़प उठता हूँ

लोग यादों में तड़पते हुए मिल जाते हैं
और मैं याद न आने से तड़प उठता हूँ

एक 'आनंद' ही ले दे के बचा रक्खा था
अब वही दाँव लगाने से तड़प उठता हूँ

© आनंद