एक भी शेर सुनाने से तड़प उठता हूँ
अब ये सौगात लुटाने से तड़प उठता हूँ
मेरा हर ज़ख्म किसी यार की निशानी है
एक भी दाग़ मिटाने से तड़प उठता हूँ
तुम किसी चोट पे मरहम लगा के हटती हो
मैं किसी और बहाने से तड़प उठता हूँ
उम्र जिस ख़्वाब की ताबीर बनाते गुजरी
मैं वही ख़्वाब मिटाने से तड़प उठता हूँ
लोग यादों में तड़पते हुए मिल जाते हैं
और मैं याद न आने से तड़प उठता हूँ
एक 'आनंद' ही ले दे के बचा रक्खा था
अब वही दाँव लगाने से तड़प उठता हूँ
© आनंद