आजकल 'वो', मेरी पलकों से उतरता भी नहीं ,
लाख समझाऊँ , वो अंजाम से डरता भी नहीं !
आँख जो बंद करूँ, ख्वाब में आ जाता है,
इतना जिद्दी है के फिर, ख्वाब से टरता भी नहीं !
उसको यूँ, मुझको सताने की जरूरत क्या है ?
तंग करता है महज़ , प्यार तो करता भी नहीं !
यूँ तो कहता है, ....चलो चाँद सितारों पे चलें ,
रहगुजर बनके, मेरे साथ गुजरता भी नहीं !
कभी कातिल, कभी मासूम नज़र आता है ,
ढंग से मिलता भी नहीं, और बिछुड़ता भी नहीं !
कह नहीं सकता, उसे प्यार है मुझसे या नहीं,
हाँ वो कहता भी नहीं , साफ़ मुकरता भी नहीं !
हाल 'आनंद' का, ...मुझसे नहीं देखा जाता ,
ठीक से जीता नहीं , ठीक से मरता भी नहीं !
--आनंद द्विवेदी २९-०४-२०११