शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

जिंदगी का प्रश्नपत्र ...



जिंदगी के प्रश्नपत्र में,
अनिवार्य प्रश्नों की जगह
कभी नहीं रहा प्रेम,
यद्यपि वह होता
यदि मैं निर्धारित करता
जीवन और परीक्षा
अथवा दो में से कोई एक,

भूख और जरूरतें...
सदैव बनी रहीं
दस अंकों का प्रथम अनिवार्य प्रश्न ,
समाज और परिवार
कब्ज़ा जमाये रहे
दूसरे पायदान पर,

मैं और मेरा प्रेम
खिसकते रहे
वैकल्पिक प्रश्नों की सारणी में
और जुटाते रहे
हमेशा, जैसे तैसे
उत्तीर्ण होने भर के अंक !

- आनंद



बुधवार, 29 जनवरी 2014

मेरे जैसों को भले ग़म के तराने दे दे

मेरे जैसों को भले ग़म के तराने दे दे
दर्दमंदों को मगर ख़्वाब सुहाने दे दे

तू खुदा है भला तेरे लिये क्या मुश्किल है
जिन्दगी दी है तो जीने के बहाने दे दे

कुछ नहीं होने से बेहतर है एक ज़ख्म रहे
रतजगे दे दे, तसव्वुर के ज़माने दे दे

कितनी उम्मीद से इस अंज़ुमन में आये हैं
राहगीरों को जरा देर ठिकाने दे दे

हसरतें कितनी महज़ हसरतें ही रहती हैं
इस हकीकत की जगह  चंद  फ़साने दे दे

हौसलों आओ जरा  इम्तेहान हो जाये
मुझको हर हाल में जीकर के दिखाने दे दे

माँगना जाँचना तौहीन है,  'आनंद' नहीं
तू  नियामत न लुटा,   दर्द पुराने दे दे  !

- आनंद






मंगलवार, 28 जनवरी 2014

प्रेम

जो प्रेम का नाम लेते हैं,
दुहाई देते हैं,
प्रेम की महिमा का बखान करते हैं
पा लेना चाहते हैं
कुछ न कुछ
किसी न किसी बहाने
मैं वही हतभाग्य हूँ

ईश्वर और प्रेम
एक हैं
एक ही है
इन तक पहुँचने का तरीका
अकारण ... बिना हेतु
'सम्पूर्ण समर्पण' !

- आनंद 

बुधवार, 15 जनवरी 2014

नहीं कह सकता कुछ भी

नहीं लिख सकता
अब अपनी उदासी
ना ही कह सकता हूँ  किसी से
खुलकर यह बात
कि अब न तुम हो
न वो सारी परेशानियाँ
जिनसे भरी रहती थी हमेशा
शर्ट की उपरी जेब
जरा सा झुकते ही टपक जाया करती थी
कोई न कोई शिकायत

लाख मन हो पर नहीं गा सकता
लड़कपन का कोई गीत
हो नहीं सकता वहाँ कभी भी
जहाँ जहाँ होना चाहता हूँ
पूछ नहीं सकता किसी से भी
दिल का राज़
दिखा नहीं सकता किसी को
अपना खोखलापन

आजकल इतना अकेला हूँ कि
नहीं महसूस कर सकता किसी को भी अपने आसपास
और इतना घिरा हूँ अपने आसपास से कि
तलाश रहा हूँ थोड़ा सा एकान्त
ताकि लिख सकूँ फिर से
एक प्रेम कविता
जिसे लिखते हुए रो पडूँ मैं
और पढ़ते हुए
मुस्करा पड़ो तुम !

- आनंद