आज से पहले मैंने कभी 'दोहे' नहीं लिखे थे ...आज सोंचा क्यूँ न प्रयास करूं ....मेरे पहले दोहे हैं ये ...इस आशा के साथ की "छमिहन्हि सज्जन मोरि ढिठाई , सुनिहन्हि बाल बचन मन लाई"!
सड़कों पर अब आ गए, आस्तीन के सांप
सड़कों पर अब आ गए, आस्तीन के सांप
इंटरनेट पर बैठकर, लिखते रहिये आप !
मन में अब उठता नहीं, पुण्य पाप का द्वन्द
सब हैं डूबे प्रेम में, हैं सब ही स्वच्छंद !
चंहुदिसि हाहाकार पर दुनिया अपने रंग
कविवर बैठे देखते, मृगनयनी के अंग !
जीवन की रस्साकशी, पीती रहती खून ,
फागुन अब आता नहीं, बारौ महिने जून !
बिछुड़ गए संगी सखा , छूट गए अरमान ,
जब से छोड़ा गाँव को, चली गयी पहचान!
'गुड़िया' 'फगुई' खो गयीं, आया नहीं बसंत,
--आनंद द्विवेदी १/०३/२०११
'गुड़िया' 'फगुई' खो गयीं, आया नहीं बसंत,
पंडित जी की पीर का, कोई आदि न अंत !
--आनंद द्विवेदी १/०३/२०११