चिलियानौला
वैसे तो वो एक गाँव है एक आम पहाड़ी गाँव
वैसे ही एक के ऊपर एक बने घर
वैसे ही घुमावदार मगर साफ सुथरे रास्ते, उतनी ही साफ़ सुथरी हवा और सामने हजरों फुट गहरी खायी के पार हिमालय की लुकाछिपी खेलती हुई धवल चोटियाँ
तीन रंग का यह गाँव
सुबह सिंदूरी
दोपहर में हरा
और रात में चम्पयी हो उठता है
पर एक बात यहाँ रहने वालों को भी नहीं मालुम की धरती पर यही एकमात्र वो जगह है जहाँ
सच में धरती और आकाश एक दूसरे से मिलते हैं ।
आकाश चूम लेता है धरती को और धरती ....डाल देती है बाहें आसमान के गले में , और अगर आप उस समय वहां हैं तो बड़े आराम से एक पाँव उठाकर चाँद पर चढ़ सकते हैं बिलकुल वैसे ही जैसे कोई नीम के पेड़ पर पड़े हुए झूले पर चढ़ता है ।
चाँद पर होने के भी अपने सुख हैं
एक तो वहां बिना वजह के भगवान नहीं होते,
दुसरे वहां किसी वजह से भी शब्द नहीं होते ..............और तीसरा वहां केवल एक रंग है चाँदी का , शुभ्र , शांत और पूर्ण ।
वहां से नीचे घाटी में देखने पर आराम से देख सकते हैं धरती की धुंधली सी परछाई
चाँद से जरा ही आगे एक मोड़ है, जहाँ से दाहिने तरफ वाला रास्ता नीलम सी हरी भरी वादियों में होता हुआ आपको वापस उसी गाँव ले आता है,
जबकि बाएं तरफ वाली पगडण्डी चीड़ और देवदार के अनुशासित सिपाहियों के बीच से होते हुए आपको वहां पहुंचा देती है जहाँ जाने की चाह हर एक में जन्म से ही दबी रहती है ....
और अचानक आप पाते हैं कि
पांडवों के बाद
आप पहले ऐसे प्राणी हैं जिन्हें यह गौरव हासिल हुआ है ।
उस गाँव के बारे में एक और बेहद दिलचस्प सच ये है कि वहाँ से जो लौटता है वो एकदम वही नहीं होता जो वहां जाता है
वहाँ जाने और लौटने के बीच में
चुपके से
कई प्रकाश वर्ष खिसक जाते हैं
और हमें
ये बात बहुत बाद में पता चलती है ।