शायरी में भर रहे थे एक मयखाने को हम
अब ग़ज़लगोई करेंगे होश में आने को हम
कौन चाहे मुल्क का चेहरा बदलना दोस्तों
भीड़ में शामिल हुए हैं सिर्फ चिल्लाने को हम
देखिये लबरेज़ हैं दिल इश्क से कितने, मगर
मार देंगे 'जाति' से बाहर के दीवाने को हम
एक भी दामन नहीं जो ज़ख्म से महफूज़ हो
रौनकें लाएँ कहाँ से दिल के बहलाने को हम
प्यार औ सरकार दोनों की रवायत एक है
रोज खायें चोट पर मज़बूर सहलाने को हम
इन दिनों 'आनंद' की बातें बुरी लगने लगीं
भूल ही जाएंगे इस नाकाम बेगाने को हम
- आनंद
26/10/2012
अब ग़ज़लगोई करेंगे होश में आने को हम
कौन चाहे मुल्क का चेहरा बदलना दोस्तों
भीड़ में शामिल हुए हैं सिर्फ चिल्लाने को हम
देखिये लबरेज़ हैं दिल इश्क से कितने, मगर
मार देंगे 'जाति' से बाहर के दीवाने को हम
एक भी दामन नहीं जो ज़ख्म से महफूज़ हो
रौनकें लाएँ कहाँ से दिल के बहलाने को हम
प्यार औ सरकार दोनों की रवायत एक है
रोज खायें चोट पर मज़बूर सहलाने को हम
इन दिनों 'आनंद' की बातें बुरी लगने लगीं
भूल ही जाएंगे इस नाकाम बेगाने को हम
- आनंद
26/10/2012