तुम्हारी होगी एक्का की तिरियल
तुम जब तक पत्ते खोलते नहीं
मैं चलता जाऊँगा दाँव
अपने 'कलर' के बूते पर ही
तुम चतुर खिलाड़ी होगे
मगर अपने रंग पर मेरा भी भरोसा
अटूट है
तुम सब कुछ जीत के भी हारोगे
मैं सब कुछ हार के भी तुम्हें जिताऊंगा
देखता हूँ पहले 'शो' कौन कराता है
कुछ लोग
पत्ते सामने गिरते ही उठा लेते हैं
पहर भर लगाते हैं गणित
मगर कुछ लोग.…
छूते भी नहीं पत्ती,
अंधी चल देते हैं
अपनी सबसे अहम बाजी,
इस तरह मुस्कराओ मत
ऐसे लोग केवल हारने के लिए खेलते हैं
क्योंकि सामने जीत रहा होता है
उनका
खुदसे भी ज्यादा अपना
तुम कोई बड़ा दाँव नहीं खेलोगे
जानता हूँ
तुम्हें न खुद पर यकीन है
न अपने पत्तों पर
और न ही मुझ पर
एक तीसरा खिलाड़ी भी है..... मुकद्दर !
अगली बाज़ी उस पर ही छोड़ते हैं
अक्सर तुरुप की चाल
उधर से ही आती है !
- आनंद