कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !
यूँ मयकशी से मेरा, कोई वास्ता न था
कब हो गयी शुरुआत, पता ही नहीं चला !
उस एक मुलाकात ने क्या क्या बदल दिया
'वो' बन गये हयात , पता ही नहीं चला !
दो चार घड़ी बाहें, दो चार घड़ी सपने
कब बीत गयी रात, पता ही नहीं चला !
मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली
कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !
हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे
कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !
'आनंद' को मिलना था, इक रोज़ बहारों से
कब बन गए हालात, पता ही नहीं चला !
आनंद द्विवेदी ०१/०६/२०११