गुरुवार, 2 जून 2011

पता ही नहीं चला.... !


कब उनसे हुई बात, पता ही नहीं चला 
कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !

यूँ मयकशी से मेरा, कोई वास्ता न था 
कब हो गयी शुरुआत, पता ही नहीं चला !

उस एक मुलाकात ने क्या क्या बदल दिया 
'वो' बन गये हयात , पता ही नहीं चला ! 

दो चार घड़ी बाहें, दो चार घड़ी सपने 
कब  बीत गयी रात, पता ही नहीं चला !

मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली 
कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !

हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे 
कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !

'आनंद' को मिलना था, इक रोज़ बहारों से 
कब बन गए हालात,  पता ही नहीं चला  !

आनंद द्विवेदी ०१/०६/२०११