प्यार की जंजीर में जकड़ा खड़ा, मैं रह गया ,
एक ही झोंके में वो प्यारा घरौंदा ढह गया !
एक मुद्दत बाद कल साहिल मुझे छूने को था,
एक ऊँची लहर आयी, दूर तक मैं बह गया !
अब न कोई दांव इस मासूम दिल का खेलना,
वक़्त जाते हुए मेरे कान में, यह कह गया !
एक सपना था, कि कोई आंसुओं की बूंद थी ?
जो भी था वो आँख में ही झिलमिलाता रह गया !
घर हमारा है मगर, दीवारें औरों की हुयीं ,
एक बड़ा प्यारा अजनबी चंद रातें रह गया !
पहले जब हालात इतने तंगदिल कातिल न थे,
'प्यार करता हूँ तुम्हे' मैं भी किसी से कह गया!
टूट जाता कभी का, लेकिन वफ़ा के नाम पर ,
वक़्त का हालात का, मैं हर तमाचा सह गया !!
--आनंद द्विवेदी ०१/०५/२००८