बरसों बाद
मेरी खिड़की पर
आज
चाँद आकर ठहर गया है
हू-ब-हू वही चाँद
वही नाक नक्श, वही चांदनी
बादलों की ओट में
वही लुका छिपी
वही शरारतें ..
इस बार नहीं जाने दूंगा ..
नहीं करूंगा
रत्ती भर संकोच
बाँहों में भर लूँगा
हर कतरा
चांदनी....तुम्हारी!
इतने दिन
कहाँ थे तुम ?
तुम्हें
मेरे गीत पसंद थे न
देखो
मैंने कितने गीत लिखे है
इनका हर लफ्ज़
कितना तुम्हारा है
आज सुनाऊंगा तुम्हें
कम से कम
एक गीत मैं !
आज पूनम है
खूब सारा वक़्त है न तुम्हारे पास
अब से पहले
न कभी
ऐसी पूनम आई
न कभी
ऐसा वक़्त
आज रुकोगे न तुम?
जल्दी मत करना
आज ही
जी लेनी है मुझे...
अपनी सारी उम्र
मुझे कल पर
जरा भी ऐतबार नहीं !!
-आनंद द्विवेदी
१५-०३-२०११