शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

मुझे रस्सी पे चलने का तजुर्बा तो नहीं, लेकिन



जरा फुर्सत से बैठा हूँ, नज़ारों पास मत आओ,
मैं अपने आप में खुश हूँ, बहारों पास मत आओ |

सितमगर ने जो करना था किया, मझधार में लाकर,
जरा  किस्मत भी अजमा लूं, किनारों पास मत आओ |

मुझे  रस्सी पे चलने का   तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
मैं फिर भी पार कर लूँगा, सहारों पास मत आओ  |

मेरी खामोशियाँ बोलेंगी, और वो बात सुन लेगा,
जो कहना है मैं कह दूंगा, इशारों पास मत आओ |

कई सदियों तलक मैंने भी, काटे चाँद के चक्कर ,
बड़ी मुश्किल से ठहरा हूँ, सितारों पास मत आओ |

महज़ 'आनंद' की खातिर , गंवाओ मत सुकूँ अपना,
न चलना साथ हो मुमकिन, तो यारों पास मत आओ |


  -आनंद द्विवेदी ३०/०९/२०११