मंगलवार, 10 मई 2011

मुझको वादे कुछ मिले थे मैंने पाया और कुछ



अपने स्कूलों  से तो, पढ़कर मैं आया और कुछ ,
जिंदगी जब भी मिली, उसने सिखाया और कुछ!

शख्त असमंजश में हूँ बच्चों को क्या तालीम दूँ  ,
साथ लेकर कुछ चला था, काम आया और कुछ !

आज फिर मायूस होकर, उसकी महफ़िल से उठा,
मुझको मेरी बेबसी ने ,   फिर रुलाया और कुछ  !

इसको भोलापन कहूं या, उसकी होशियारी कहूं?
मैंने पूछा और कुछ,   उसने बताया और कुछ  !

सब्र का फल हर समय मीठा ही हो, मुमकिन नहीं,
मुझको वादे कुछ मिले थे,   मैंने पाया और कुछ !

आज तो  'आनंद' के,    नग्मों की रंगत और है ,
आज दिल उसका किसी ने फिर दुखाया और कुछ

              आनंद द्विवेदी  १०/०५/२०११