जिंदगी जब भी मिली, उसने सिखाया और कुछ!
शख्त असमंजश में हूँ बच्चों को क्या तालीम दूँ ,
साथ लेकर कुछ चला था, काम आया और कुछ !
आज फिर मायूस होकर, उसकी महफ़िल से उठा,
मुझको मेरी बेबसी ने , फिर रुलाया और कुछ !
इसको भोलापन कहूं या, उसकी होशियारी कहूं?
मैंने पूछा और कुछ, उसने बताया और कुछ !
सब्र का फल हर समय मीठा ही हो, मुमकिन नहीं,
मुझको वादे कुछ मिले थे, मैंने पाया और कुछ !
आज तो 'आनंद' के, नग्मों की रंगत और है ,
आज दिल उसका किसी ने फिर दुखाया और कुछआनंद द्विवेदी १०/०५/२०११