उसने कहा
तुम पुरुष नहीं, स्त्री हो मेरी जान
गलती से गलत आत्मा में
गलत ढाँचा लग गया है
तुम एक बहुत कमज़ोर इंसान हो
एकदम लुंज पुंज
जो परिस्थितियों से लड़ना चाहता ही नहीं,
तुम, तुम्हारे साथ जो हो रहा है उसे होने देते हो
डर-डर के जीते हो तुम
अपने ही दायरे में .., !
नहीं तोड़ सकते तुम कोइ चक्रव्यूह,
तुम न केवल सामर्थ्य विहीन हो
वरन पात्रता होते हुए भी पात्र विहीन हो
जिसमे ... नहीं डाल सकता कोई कुछ
चाहकर भी
तुम्हारी चाल इतनी धीमी है कि
तुम उस जगह, उस वक्त पहुंचोगे ...जब
प्रेम का आखिरी कतरा उलीचा जा चुका होगा
मगर फिर भी तुम्हें
अपनी हार का अहसास नहीं होगा
मान लोगे नियति ही तुम कुछ भी न पाने को
तुम
किसी काम के इंसान नहीं हो .....।
सच ही तो कहा उसने
तुम्हारे बिना ,
मैं
एकदम ऐसा ही हूँ
किसी काम का नहीं
बेकार .........
इच्छाविहीन !
- आनंद
तुम पुरुष नहीं, स्त्री हो मेरी जान
गलती से गलत आत्मा में
गलत ढाँचा लग गया है
तुम एक बहुत कमज़ोर इंसान हो
एकदम लुंज पुंज
जो परिस्थितियों से लड़ना चाहता ही नहीं,
तुम, तुम्हारे साथ जो हो रहा है उसे होने देते हो
डर-डर के जीते हो तुम
अपने ही दायरे में .., !
नहीं तोड़ सकते तुम कोइ चक्रव्यूह,
तुम न केवल सामर्थ्य विहीन हो
वरन पात्रता होते हुए भी पात्र विहीन हो
जिसमे ... नहीं डाल सकता कोई कुछ
चाहकर भी
तुम्हारी चाल इतनी धीमी है कि
तुम उस जगह, उस वक्त पहुंचोगे ...जब
प्रेम का आखिरी कतरा उलीचा जा चुका होगा
मगर फिर भी तुम्हें
अपनी हार का अहसास नहीं होगा
मान लोगे नियति ही तुम कुछ भी न पाने को
तुम
किसी काम के इंसान नहीं हो .....।
सच ही तो कहा उसने
तुम्हारे बिना ,
मैं
एकदम ऐसा ही हूँ
किसी काम का नहीं
बेकार .........
इच्छाविहीन !
- आनंद