कुछ और देखने दे, जरा जिंदगी ठहर,
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर |
ईमान ही साथी है तो उसको भी देख लूं ,
कल तक तो 'यही दोस्त' था मेरा इधर उधर |
जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया,
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र |
दो घूँट हलक में गये, हर दर्द उड़न छू,
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर |
मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे 'गाँव'
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर |
खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू,
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
'आनंद' ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर |
-आनंद
२१ अप्रेल २०१२
२१ अप्रेल २०१२