ये कैसा मौसम आया है, दिल कैसा सौदाई है
पाकर मुझे अकेला फिर से यादों की बन आई है
अरसे बाद हुआ है झगड़ा मेरा ऊपर वाले से
अरसे बाद लगा है मेरी किस्मत ही तन्हाई है
तेरे दर पर भी वैसा हूँ जैसा अपने घर में था
सारे सपने पूछ रहे हैं, ये कैसी पहुनाई है ?
कुआँ बावली झरने नदियाँ ताल पोखरे हरियाली
जग में जितना कुछ सुन्दर है सब तेरी रानाई है
ये धरती जितनी भोला की उतनी ही जुम्मन की है
मत इनको मज़हब में बांटो ये बेकार लड़ाई है
देश बेंच लेने की खातिर सारे गले मिल रहे हैं
कितना एका है चोरों में, देता साफ़ दिखाई है
बात बात में हंसी ठहाके, बेफ़िक्री मस्ती वाला
वो 'आनंद' खो गया यारों, ये उसकी परछाई है
- आनंद