अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया
पपड़ी ताजी जख़्म पुराना है भैया
सब के होंठों पर है बात मोहब्बत की
अन्दर झाँको तो वीराना है भैया
उससे अक्सर अपनों के ही क़त्ल हुए
मेरा जिस शै से याराना है भैया
कौन किसी की गलियों में डेरा डाले
ठहरे, जब तक आबो दाना है भैया
बरसाती नदियों के जिम्मे खेती है
उम्मीदों की फ़सल उगाना है भैया
टीवी वाले बाबा अक्सर कहते हैं
खाली हाथ जहाँ से जाना है भैया
बातें जाने की, उद्यम सब टिकने के
जीवन है या दारूखाना है भैया
मनमंदिर की मूरत में 'आनंद' नहीं
बाहर सबको ज्ञान बताना है भैया।
© आनंद