बुधवार, 27 जून 2012

फिर न इसी शब की सहर हो








अल्लाह करे आप पर मौला की नज़र हो 
अल्लाह करे आपका खुशबू का सफ़र हो 

मेरे उठे हैं हाथ दुआओं में आज फिर  
अल्लाह करे मेरी दुआओं में असर हो 

तेरी नज़र के ज़ख्म को जन्नत बना लिया  

अल्लाह करे आपकी हर शय पे  नज़र हो

इक शख्स दबे पाँव  जहाँ से चला गया

अल्लाह करे आपको ये भी न खबर हो

'आनंद' अगर और शबे-ग़म हों राह में
अल्लाह करे फिर न इसी शब की सहर हो  


- आनंद   
२२ जून २०१२  


मंगलवार, 12 जून 2012

उसे रब न कहूँ तो भी...






गर अब पुकारना हो, तो तुझको क्या कहूँ मैं 
क्या अब भी दोस्त बोलूं या फिर खुदा कहूँ मैं 

कुछ तेरी गली वाले  कुछ  मेरे शहर वाले 
दोनों ही चाहते हैं,  तुझे  बेवफा  कहूँ  मैं

कुछ दिन से सोंचता हूँ तुझे भूल क्यों न जाऊं 

इसे क्या कहूं, हिमाकत ? या हौसला कहूं मैं

कभी जिस्म के सरारे कभी रूह की मुहब्बत
तुझे सिर्फ़ ख्याल समझूं या फलसफ़ा कहूँ मैं

अब भी तो तेरी खुशबू साँसों में महकती है
कभी गुल तुझे कहूं मैं कभी गुलशितां कहूं मैं

जिस शख्स ने अकेले इतने सबक दिए हों
उसे रब न कहूँ तो भी, रब की दुआ कहूँ मैं

उस दौर सा भरोसा 'आनंद' पर न करना
वो होश में नहीं  है उसे क्या बुरा कहूँ मैं
 
- आनंद   
१२ जून २०१२ !

सोमवार, 11 जून 2012

पर हाय ये जम्हूरियत ही खा गयी मुझे






ऐ ख्वाब तेरी ये अदा भी, भा गयी मुझे
वो सामने  थे  और नींद आ गयी मुझे

पल भर को मेरी आँख तेरी राह से हटी
जाने कहाँ  से तेरी याद आ गयी मुझे

कुछ इश्क़ ने सताया कुछ जिन्दगी ने मारा
आख़िर को एक दिन तो मौत आ गयी मुझे

मैं आम आदमी हूँ आज़ाद  तो  हुआ था
पर हाय ये जम्हूरियत ही खा गयी मुझे

तू जिंदगी है फिर तो जिन्दगी की तरह मिल
बन के भला रकीब, क्यों  मिटा गयी मुझे

तेरे महल से चलकर 'आनंद' की गली तक
तेरी दुआ  सलामत पहुंचा  गयी  मुझे

-आनंद
११ जून २०१२ !

सोमवार, 4 जून 2012

आजकल हर सांस ही उनकी बयानी हो गयी






आजकल हर सांस ही उनकी बयानी हो गयी
मेरी हर धड़कन मोहब्बत की कहानी हो गयी 

मेरी खुशियाँ, मेरी बातें, मेरे सपने, मेरे गम 
मेरी हर इक बात अब उनकी निशानी हो गयी

सादगी मासूमियत की बात मैंने की मगर 
उन तलक पहुंची तो कुछ की कुछ कहानी हो गयी 

चाँद उसका रात उसकी और वो नाचीज़ की 
पहले वो शबनम लगी फिर रातरानी हो गयी 

आजकल ख्वाबों में भी इक ख़्वाब आता है मुझे 
मेरी उनकी आशिकी सदियों पुरानी हो गयी

उनकी बाँहों में मरूं या उनकी राहों में मरूं
फर्क क्या है जब उन्ही की जिंदगानी हो गयी

मैं चला, 'आनंद' से यह  बात कहनी है मुझे
देख तुझपे क्या  खुदा की हरबानी हो गयी

- आनंद
०४ जून २०१२







रविवार, 3 जून 2012

एक विज्ञापन ...जो अक्षरसः सत्य है ..पर शायद गैरकानूनी है

यह न कोई शिगूफा है ...न कोई कविता और न ही चर्चा में आने का सस्ता हथकंडा

मैं (आनंद द्विवेदी) खुद को बेंच रहा हूँ ! और चूँकि मैं इसी समाज में रहता हूँ इसलिए ये बात सोशल नेटवर्किंग के जरिये भी कह रहा हूँ, मैं  बहुत गंभीर हूँ इसलिए आपसे गुजारिश है कि 'आफर दस्तावेज' को बहुत ध्यान से पढ़िए !
पहले प्रोडक्ट परिचय
आनंद द्विवेदी 
स्नातक 
उम्र ४३ वर्ष ! पब्लिक रिलेशंस के क्षेत्र में २० साल का अनुभव
शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ, जिम्मेदार, इमानदार, बात के पक्के (इन बातों का वाणिज्यिक रूप से कोई महत्त्व नहीं)
किसी भी तरह का कोई संक्रामक रोग नही |

प्रोडक्ट की कीमत
25,00000 ( रूपये २५ लाख मात्र ) किसी को यह रकम बहुत ज्यादा लग सकती है किसी को कम ..पर मेरे लिए न कम है न ज्यादा

अब
प्लस प्वाइंट और रिस्क फैक्टर
पहले प्लस प्वाइंट
१- देसी और मेहनती आदमी है | गांव में किसानी के सारे कामों से लेकर शहरी जिंदगी के सारे कामो को बखूबी अंजाम दे सकता है !
२- घर में झाड़ू पोंछा से लेकर घर के सारे काम (खाना बनाना नहीं आता) ऑफिस मैनेजमेंट कम सुपरविजन, फैक्ट्री में कोई भी काम | काम अगर बहुत टेक्नीकल है तो बंदा भी बहुत कुशाग्र बुद्धि का है कोई भी बात दो बार से ज्यादा नहीं समझानी पड़ती |
३- कंप्यूटर से सम्बन्धित सारे वो काम जो एक आम ऑफिस के लिए जरूरी होते हैं |
४- अगर पढ़ने और लिखने की खुली  छूट दी जाये तो...इन्वेस्ट की गयी रकम आश्चर्यजनक रूप से बहुत जल्दी रिकवर की जा सकती है |
५- जिंदगी और समाज की अपनी उम्र से ज्यादा समझ है ... कभी भी इसका उपयोग किया जा सकता है !
६- बिकने के तुरंत बाद से ही शरीर, नाम और मजहब स्वयं का नहीं क्रेता (खरीददार) के अनुसार रहेगा  और क्रेता के  पूर्ण स्वामित्व में रहेगा | और इसी से यह बात भी साफ़ है कि क्रेता को पूर्ण अधिकार होगा कि वो इस शरीर को कैसा खाना दे कितना दे ...क्या पहनने को दे क्या ना दे  जैसे रखना चाहे रखे ! 
७- क्रेता को जब भी लगे कि अब प्रोडक्ट उसके काम का नहीं रह गया है वह उसे तत्काल मुक्त हो सकता है ! क्रेता का प्रोडक्ट पर स्वामित्व तो रहेगा ..मगर कोई भी जिम्मेदारी नहीं !
अब रिस्क फैक्टर
१- प्रोडक्ट नवंबर में ४४ साल का हो जायेगा .... युवाओं की तरह बहुत अधिक शारीरिक श्रम की उम्मीद ना करें 
२- सौदा 'संपन्न' होने के बाद प्रोडक्ट डिलवरी में ४ से ५ दिन का समय लगेगा (ये समय कुछ देनदारियां निपटाने और गांव कि कुछ पुश्तैनी अचल संपत्ति को परिवार के नाम हस्तांतरित करने में लगेगा इस दौरान क्रेता या उसका कोई नामित प्रतिनिधि प्रोडक्ट को अपनी निगरानी में रख सकता है )
३- चूँकि प्रोडक्ट एक शरीर भी है  जिसकी कोई गारंटी नहीं होती ...इसलिए क्रेता को प्रोडक्ट का बीमा करवाने की सलाह दी जाती है !
नोट :- यह एक फेसबुकिया स्टेटस नहीं है ...इसे लाइक और इस पर कमेन्ट ना करें ! इच्छुक खरीददार  anandkdwivedi@gmail.com पर मेल करें | मेमोरंडम ऑफ़ अन्डरस्टैंडिंग  बनवाते समय कानूनी पहलुओं का ध्यान रखा जायेगा और ये खरीददार और प्रोडक्ट जैसे शब्द वकील की सलाह के अनुसार हटाये जा सकते हैं |
धन्यवाद !