मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

इंतजार

मैं विदा नहीं करता किसी को भी
चले जाते हैं सब के सब
अपने आप ही,
अपने स्वयं के जाने तक
मुझे देखना है बस सबका
आना और आकर चला जाना

इस उम्मीद में हूँ कि
शायद कोई ठहरे
पूछे
कि कैसे हो,
कोई कहे
कि आओ साथ चलें,  
मगर एक इंतजार के सिवा
कोई ठिठकता भी नहीं अब पास

इंतजार कुछ कहता नहीं
मैं भी कुछ पूछता नहीं,
हम दोनों हैं
मौन,
एक दूसरे से ऊबे हुए
एक दूसरे के साथ को अभिशप्त !

 - आनंद

रविवार, 29 दिसंबर 2013

कैसे जानूँ तुझे



तुम हो
क्योंकि मेरा वज़ूद है अब तक
और कैसे जानूँ  तुमको 
सिवाय जीवन की तरह अनुभव करने के,
तुम्हें और खुश करने के हज़ार जतन ढूँढता है मन 
जब होते हो तुम खुश,
ढूँढता है मनाने के लाख बहाने
जब होते हो नाखुश, 
डूबता है तुम्हें उदास देखकर 
नाचता है तुम्हारी अल्हड़ता से 
गर्वीला हो उठता है…पास पाकर तुम्हें, 
एक मौन सा पसर जाता है जीवन पर 
तुम्हें पाकर दूर 

तुम इसे प्रेम मानो या न मानो 
मैं इसे जीवन मानूँ या न मानूँ 
सच यही है कि  
मेरे तुम्हारे इन सम्बन्धों में 
तुम न होकर भी हर पल व्याप्त हो 
किसी अनचीन्हें ईश्वर की तरह 
मैं हर पल होकर भी कहीं नहीं हूँ
नश्वर संसार की तरह

तुम सत्य हो
मैं कथ्य
तुम चेतन हो
मैं जड़ 
और हमारे संयोग का नाम है
'जीवन' !


- आनंद 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया ...

अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया
पपड़ी ताजी जख़्म पुराना है भैया 

सब के होंठों पर है बात मोहब्बत की
अन्दर झाँको तो वीराना है भैया 

उससे अक्सर अपनों के ही क़त्ल हुए
मेरा जिस शै से याराना है भैया 

कौन किसी की गलियों में डेरा डाले
ठहरे, जब तक  आबो दाना है भैया 

बरसाती नदियों के जिम्मे खेती है
उम्मीदों की फ़सल उगाना है भैया 

टीवी वाले बाबा अक्सर कहते हैं
खाली हाथ जहाँ  से जाना है भैया 

बातें जाने की, उद्यम सब टिकने के
जीवन है या दारूखाना है भैया 

मनमंदिर की मूरत में 'आनंद' नहीं  
बाहर सबको ज्ञान बताना है भैया। 

© आनंद

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सपना

छोड़ दूँ
एक ख़ुशबू
तुम्हारे आसपास
एक भरोसा
तुम्हारे भीतर
एक साथ
तुम्हारे अहसासों में
एक गुनगुनाहट
तुम्हारे जीवन में
एक सपना
तुम्हारी आँख में
एक टीस
तुम्हारे एकांत में

फिर चला जाऊँगा
जितनी दूर तुम कहोगी
उतनी दूर
तुम से
जीवन से ...
तब तक देखने दो मेरी
अंधेरे की अभ्यस्त आँखों को
रोशनी का एक सपना
एक सपना
किसी के साथ का !

- आनंद

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

ज़िद्दी बच्चा ...!

एक जिद्दी बच्चा सा है
मेरे ही अंतर्मन का एक हिस्सा
भरी महफ़िल में पकड़कर खींच लेता है
एकांत की तरफ
उत्सव में उदासी की तरफ
चमकती आँखों में आँसू की तरफ
चिर असंतुष्ट कहीं का,
समझाता हूँ, मनचाहा नहीं संभव यहाँ
जबाब देता है ...
कि न्यूनतम है उसकी चाहत
फुसलाने की हर कोशिश नाकाम देख
स्वीकार लेता हूँ झट से हार
'चाँद खिलौना' लगती है अब छोटी से छोटी माँग,

न खुद को न्यूनतम दे सकता हूँ
न उसको
अधिकतम यही संभव है
कि चाहतों से बचा जाए,
पर वो बच्चा
मेरी सुने तब ना !

- आनंद



शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

बिन कहे

तुम हमेशा कहते हो
"बातें तो कोई तुमसे ले ले'
शब्द बुनना तुम्हारा काम है"
पर तुम्हीं देखो
शब्द कितने विवश हैं,
बिन कहे ही लुटाया तुमने
मुझ पर हर रंग,
बिन कहे ही दिन रात धोया मैंने
आँसुओं से तुम्हारी मूर्ति,
बिन कहे ही  चुपचाप करता हूँ
अपने हर सपने का श्रृंगार,
जब जब बिना कहे तुम तोड़ देते हो
एक बारीक धागा ...
मैं रात रात कातता हूँ सूत
और बिना कुछ कहे
बना लेता हूँ एक झोली
अल सुबह बिना कुछ कहे
फैला देता हूँ तुम्हारे सामने
बिन कहे तुम बरसा देते हो उसमें
प्यार या तिरस्कार...
स्वयं की इच्छानुसार,

मेरे अन्दर एक भागीरथ है
बिन कहे ही वो ले आएगा
एक दिन ...तुमको
जन्मों से बंजर
मेरे वज़ूद  की पथरीली ज़मीन पर

मगर सुनो !
क्या तुम नहीं समझ सकते
एक बात  बिन कहे
कि
तुम्हारे बिना
न मेरा कोई अस्तित्व है
न कोई जीवन !

- आनंद





बुधवार, 20 नवंबर 2013

ऐसे ही ठीक हूँ

तुम्हें
न प्रेम चाहिए
न मैं
न साथ
न ही सुख
इतनी कम हैं तुम्हारी चाहतें
कि कभी कभी
तुमसे ईर्ष्या होती है

__________


मन करता है
तुम्हें जोर से आवाज़ लगाऊं
खिलखिलाकर हसूँ
दोनों हाथ फैलाकर
मैदान में सरपट दौडूँ,
पहरों नीले आसमान को देखूँ
उड़ते हुए परिंदों को इशारे से बुलाऊं
बिना सुर और लय की परवाह किये हुए
गाऊं मनपसंद गाना
अरे अंत नहीं है
अगर एक बार मस्ती पे आ जाऊं तो ...

मगर बिस्मिल्लाह ....
तुमसे ही करना चाहता हूँ
और तुम्म तो फिर
तुम ही हो !

मेरा कुछ नहीं हो सकता
मैं ऐसे ही ठीक हूँ  !

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ओ प्रवासी परिंदे ...


प्रवासी परिंदे की तरह
तुम
जब उड़ कर आये
मेरे शहर की गलियों में,
मैंने तैयार रखीं थीं
प्रतीक्षारत आँखें
थोड़ा सा इंतज़ार
बहुत सारी उम्मीदें …
और हाँ कुछ बेवकूफ़ियाँ भी,

इस पूरे एक पखवाड़े
मैंने पहने एकदम चमचमाते जूते
रोज कलप और इस्तरी किये कपड़े
ध्यान रखा कि पूरी गोलाई में कटे रहें नाखून
और आईने को एक भी बाल
सफ़ेद नज़र न आये

आज जब तुम लौट रहे हो 
अपने आशियाने की तरफ
मैंने अपने अंदर के शरारती बच्चे को
पीट दिया है बेवजह,
अचानक हो उठा हूँ शांति प्रिय
इतना बूढ़ा  … और थका
कि
अब नहीं दे सकता खुद को
कुछ भी !

- आनंद





गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बची हुई ध्वनियाँ

वो पंक्षी
आज नहीं रोया
छटपटाया भी नहीं
भूल से भी नहीं किया किसी से
दूसरे उड़ते हुए पंक्षियों के बारे में बात
बल्कि बैठा बड़े ही इत्मीनान से
अपने ही हाथों से
नोचता रहा  .... एक एक करके
अपने पंख,
अपने कभी न उड़ पाने का ऐसा विश्वास....
आखिर दुनिया
विश्वास  से ही तो चलती है !

तुम्हारा न होना
एकदम ऐसा ही है
जैसे
दिन का न होना
पानी का न होना
या फिर न होना शब्द का
इस बार बची हुई ध्वनियाँ भी
साथ ले जाना तुम !

चीर फाड़ देने
नसें काट देने / बदल देने से
क्या होगा ?
विज्ञान को कुछ नहीं पता
दिल के बारे में
और न ही उसको लगने वाले रोग के बारे में !

- आनंद

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

अन्दर दीपक बुझा हुआ है

अंदर दीपक बुझा हुआ है पर बाहर दीवाली है
ऊपर से सब हरा भरा है अंदर खाली खाली है

मौसम का रुख देख देख कर मुझको ऐसा लगता है
जिसमें चोट सताती है,  वो पुरवा चलने वाली है

मेरा मुझमे नहीं रहा कुछ, अच्छा बुरा उसी का है
हम जिस सावन के अंधे हैं ये उसकी हरियाली है

मुझको तो कुछ पत्थर भी अब इंसानों से लगते हैं
इंसानों में भी पत्थर की नस्लें आने वाली हैं

कितने दिन 'आनंद' रहेगा तू बेगानी बस्ती में
अपनेपन की परछाई भी आँख चुराने वाली है

-आनंद 

रविवार, 10 नवंबर 2013

बे-उमंग !

सुबह गुनगुने सूरज के बगल में
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था

मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि 
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए

और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया

तुम पर अटूट विश्वास …  मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी.....  मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग

तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !

- आनंद

शनिवार, 9 नवंबर 2013

मन के या बे-मन के हैं


मन के या  बे-मन के हैं  
हम भी फूल चमन के है

मेरे ग़म का रंज़ न कर
हम ऐसे बचपन के हैं 

सच को देखे कौन भला 
सारे दृश्य नयन के हैं

बातें त्याग तपस्या की
लेकिन ध्यान बदन के हैं

अपने प्राण-पखेरू भी
कल को नील गगन के हैं

एक हो गयी है दुनिया
तन मन से सब धन के हैं 

किससे क्या उम्मीद करूँ
सब तो अपने मन के हैं

साँसों तुम ही थम जाओ
सब झँझट धड़कन के हैं

है 'आनंद' नाम भर का
दर्द सभी जीवन के हैं

 - आनंद









गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तू है ख़ुदा, तो कर ये...


तू है ख़ुदा, तो कर ये एहतराम के लिए
थोड़ा सा दर्द भेज, आज  शाम के लिए

जो रिंद कभी होश में आया न उम्र भर
उसको न रोक यार, एक ज़ाम के लिए

इतनी न दिखा मुझपे सितमगर इनायतें
तू ही  बहुत है, हसरते-नाकाम के लिए

मुंसिफ़ है तू, गवाह भी है, मुद्दयी भी है
हाज़िर है गुनहगार भी इल्ज़ाम के लिए

आनंद ! कभी जिंदगी  से पूछ भी तो ले
है नाम के लिए या किसी काम के लिए

- आनंद




बुधवार, 6 नवंबर 2013

सुनो तुम ...

गोली मारो प्रेम को
हो सके तो कभी एक बात का ख्याल करना
एक जोड़ी गीली आँखें
एक अदद खाली खाली दिल
इनको जैसे तैसे संभाले एक काया
और है...
तुम्हारे पास
तुम्हारे व्यक्तित्व के अतिरिक्त,
जिसका अपना कुछ नहीं
पहचान भी नहीं !

सुनो...! स्टैंडबाई चीज़ें भी
कभी इस्तेमाल न होने पर
इस्तेमाल लायक नहीं रहती फिर !

- आनंद 

सोमवार, 4 नवंबर 2013

लगा लो दाँव !



तुम्हारी होगी एक्का की तिरियल
तुम जब तक पत्ते खोलते नहीं
मैं चलता जाऊँगा दाँव
अपने 'कलर' के बूते पर ही
तुम चतुर खिलाड़ी होगे
मगर अपने रंग पर मेरा भी भरोसा
अटूट है
तुम सब कुछ जीत के भी हारोगे
मैं सब कुछ हार के भी तुम्हें जिताऊंगा
देखता हूँ पहले 'शो' कौन कराता है

कुछ लोग
पत्ते सामने गिरते ही उठा लेते हैं
पहर भर लगाते हैं गणित
मगर कुछ लोग.… 
छूते भी नहीं पत्ती,
अंधी चल देते हैं
अपनी सबसे अहम बाजी,
इस तरह मुस्कराओ मत
ऐसे लोग केवल हारने के लिए खेलते हैं
क्योंकि सामने जीत रहा होता है
उनका
खुदसे भी ज्यादा अपना

तुम कोई बड़ा दाँव नहीं खेलोगे
जानता हूँ
तुम्हें न खुद पर यकीन है
न अपने पत्तों पर
और न ही मुझ पर
एक तीसरा खिलाड़ी भी है.....  मुकद्दर !
अगली बाज़ी  उस पर ही छोड़ते हैं
अक्सर तुरुप की चाल
उधर से ही आती है !

- आनंद
 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दिये का जलना !


दिये का जलना
अभिमान नहीं है
(अँधेरा भगाने का )
बड़प्पन नहीं है
(प्रकाश फैलाने का)
दर्द भी नहीं है
(पीड़ा से जलने का )
यह एक सहज क्रिया है
जिसमें शामिल है तीन
एक आग जो जलाती है
एक बाती जो जलती है
एक माध्यम जो बहता है
दोनों के बीच

तुम आग हो
प्रेम माध्यम है
और मैं बाती
जलना सुखद है
दिये का मतलब ही है जलना
उसकी पहचान है यह

दिया बुझता कहाँ है
बुझती है आग
तुम न होते
तो ये सुख
नहीं होता मेरे नसीब में
एक बुझे दिये की पीड़ा से बचाकर
मुझे जलाये रखने के लिए
दिल से शुक्रिया मेरे मीत !

- आनंद


गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

चाहतें ......!

   

चाहते हैं कि
थमने का नाम नहीं ले रही
जिंदगी है कि
छदाम देने को राजी नहीं
दिल है कि
जान लेकर ही मानेगा
तुम हो कि
कोई फर्क ही नहीं पड़ता
 ...  

ना जाने... कितना बड़ा होता है
एक आदमी,
खाक़ नहीं होता
वर्षों जलने के बाद भी,
रक्तबीज की तरह
जिन्दा हो उठता है
अपनी ही
किसी चाहत से फिर
...

कुछ न चाहना भी
एक चाहत है
तुम्हारी नज़रों में
थोड़ा और भला बनने के लिए
मिटने की चाहत भी
एक चाहत है
हमेशा बने रहने की
...

आ जाओ मृत्यु
सौंप दूं तुम्हें, अपनी
हर चाहत
कि जिंदगी को
इनमे से, एक भी
स्वीकार्य नहीं
और ना ही स्वीकार है मुझे
इनमें कोई संसोधन
...

कुछ चाहतें
चाहतें नहीं होती
दरअसल
वो जीवन होती हैं
मुझे भी पहले
ये बात पता नहीं थी

 - आनंद






सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

वरदान अकेलापन !

जिस अकेलेपन को 
जीवन भर कोसता रहा
दुख मनाता रहा जिसका
वही अब  सुख है
अमृत है,

नहीं होता जब कहीं कोई
पसरता है मीलों सन्नाटा
छूट जाती है दुनिया पीछे
छूट जाता है सारा कारोबार
सपने, आशाएँ
उदासियाँ निराशाएँ … भय
सब के सब

तब
अचानक आकर तुम्हारा अहसास
लिपट जाता है रूह से मेरी
मैं जीता हूँ तुमको …पा लेता हूँ खुद को,
निपट तन्हाई में तुम और मैं
आख़िर यही तो थी मेरी कल्पना
युगों से
जन्मों से,

एक सोच
एक जीवन
और एक दुनिया,
जादूगर!
तुम चाहो तो क्या नहीं बदल सकते !!

- आनंद

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

अकथ

मैंने कह दिया,
लेकिन
कह पाया
केवल खुद को
नहीं नहीं
खुद की इच्छाओं को,

अकथ
आज भी
नहीं कहा जा सका मुझसे
मैं ये क्या कह रहा हूँ
और क्यों ?

पर... क्या मैं
कह रहा हूँ ये सब,
मैं तो तुम हो गया हूँ
प्रियतम

ये कहना भी
अर्चन है तुम्हारा
मेरे मंदिर के घंटियों की ध्वनियाँ
इन्हें  बेतरतीब ही
स्वीकार लो !

- आनंद  

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

मुस्कराते ख़्वाब !

नींद में ही था
कि तुम्हारी याद
छिड़क कर भाग गयी
एक चुटकी मुस्कराहट
होठों पर, 
पर...तुम तो सैकड़ों कोस दूर हो
ये कौन सुबह सुबह नाक दबाकर भाग गया फिर ?

ये मुस्कराहटें...
कब बोयी थी तुमने हमारे लिए
अब एकदम लहलहा रही हैं
धान की पकी बालियों की तरह !
तुम्हारे अहसासों की पाग बाँध
मैं भी निकल पड़ा हूँ
खेतों की तरफ
सुनूँगा गन्ने की पत्तियों की सरसराहट
देखूँगा बालियों का नाचना
कातिक की इस सोना बिखेरती दोपहर भर
पड़ा रहूँगा किसी मेंड़ पर,

खेलूँगा सारा दिन तुम्हारी यादों से
बार बार हटा दूंगा
तुम्हारे चेहरे पर आती वो शरारती लट,
दिखाऊंगा तुम्हें 
नहर किनारे टहलता हुआ 
सारस का जोड़ा,
जलमुर्गी और टिटिहरी के अंडे,
दूर चटक नीले आसमान के नीचे
उड़ता हुआ सफ़ेद हवाई जहाज...,
उससे जरा नीचे पक्षियों के भागते झुंड,
छील छील कर खिलाऊंगा
अपने हाथ से तोड़कर कच्चे सिंघाड़े
और नज़रें बचाकर झाँकूंगा तुम्हारी आँखों में ...

बस
उसके बाद
या तो और ख़्वाब देखूँगा
या फिर
कोई ख़्वाब नहीं देखूँगा !

- आनंद

सोमवार, 21 अक्टूबर 2013

बेबस प्रेम

तुम जब भी
जरा सा भी
अपनेपन से बोल देते हो
केवल मानवता के नाते,
मन...
उस दिन बहुत जिद करता है
सारी दुनिया में तुम्हारी तारीफ़ करने की
और
रोने की,
बहाने से करता है वह
दोनों काम
दोस्त तलाशता है
बातें करने के लिए
बहाने से तुम्हारी तारीफ़ करता है
एकांत तलाशता है
फूट फूट कर रोने के लिए
और बिना किसी बहाने के रोता है

नहीं जान पाया
कि कब इतना टूट गया
ये मन !
बावरा अब जरा सा भी
उम्मीद की आहट सुनते ही
कातर हो उठता है
जैसे मौन रूप से तैयार करने लगा हो खुद को
एक अगली सजा के लिए,
जानता हूँ
प्रेम जबरन नहीं होता किसी से
मगर हो जाय तो  ये बैरी
जबरन  मिटता भी तो नहीं,
अपने वश में तो न खोना है
न पाना
अपन को बस एक ही काम आता है
डबडबाई आँखों से मुस्कराना ...

सुनो !
किसी को इस कदर जीत लेने का हुनर
मुझे भी बताओ न कभी ...!

- आनंद


बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

तेरी गंध !


कौन समझेगा इन मौसमों को
और समझने की कोशिश भी क्यों
पल पल बदलती कायनात
अहोभाव से भरा हुआ वजूद
प्रेम से भरा हुआ दिल
रजनीगंधा सी महकती हवाएँ
संगीत सी बजती ध्वनियाँ
उर्जाओं से लयबद्ध कदमताल
हर तरफ बेवज़ह आतिशबाज़ियाँ
क्या है ये सब
एक तेरी आहट में इतनी शक्ति ?
दुनिया हर कदम पर चकित करती है
और चकित करती है
प्रेम की अपार शक्ति

ईश्वर नगाड़े बजाता है कई बार
बहरे बने हम
मैं मैं के आगे नहीं सुनते कुछ भी,
सुनो अनाड़ी प्रियतम !
(अनाड़ी इसलिए कि जितना लेते हो उससे ज्यादा दे जाते हो)
ले जाओ मुझसे जो भी है मेरे आसपास
रखना चाहता हूँ हर पल खाली यह घट मैं
अपनी कामनाओं से
ताकि तुम्हारे अहसास की सुगंध
बे-रोकटोक आती और जाती रहे
और जब मिट्टी का यह घट फूटे
तो न निकले इससे मेरी इच्छाओं का मलबा
बल्कि बिखरे इससे तुम्हारी सुगंध
तुम्हारी ही सुरभि !

- आनंद



शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

ऐसा क्यों होता है


ठीक उसी समय
क्यों होती हैं ढेर सारी बातें तुम से
जब, कहने को कुछ नही होता
एक शब्द भी नहीं,
मौन इतना मुखर क्यों होता है,

ठीक उसी समय
क्यों होते हो तुम इतने पास
जब, दुनिया में
खुद से ज्यादा अकेला कोई नहीं होता
तन्हाई इतनी अपनी क्यों होती है

ठीक उसी समय
क्यों हो जाते तुम इतना बेगाने
जब, मन बुनने लगता है
सपनों की एक चटाई
सपने इतने बैरी क्यों होते हैं

ठीक उसी समय
आँख क्यों छलक जाती है
जब, पास से गुजरने वाला होता है
खुशियों का कोई कारवाँ
आँसू इतने ईर्ष्यालु क्यों होते हैं

ठीक उसी समय
क्यों पता चलती है अपनी कमजोरी
जब, हिम्मत करो जरा मजबूत होने की
खुद को धोखा देना
इतना आसान क्योँ होता है

- आनंद


बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

चार बूँद आँसू

(एक)

सोचता हूँ  ओढ़ लूं
किसी की हर चुप्पी
हर इनकार
दूरी की हर कोशिश
और  हो जाऊँ
उसी की तरह
एकदम सुरक्षित

प्रेम  …  एक जोखिम तो है ही !

(दो)

एक तरफ जगत की सम्पति
और जगदीश स्वयं
दूसरी  तरफ़ केवल तुलसी की एक पत्ती,
तुम्हारा नाम
वही तुलसीदल है,
मैं अपने पलड़े में जो भी रख सकता था
रखकर देख लिया
जैसे ही तुम्हारा नाम आता है
तृण हो जाता है
ये जगत
और मेरा

मैं !

(तीन)

गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे 

टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं 

मसलन 
एक सबक !

(चार)


निपट अकेलेपन में भी 
कोई न कोई
साथ होता है,
इंसान के बस में न साथ है
न तनहाई,
बेबस इंसानों से खेलना
न जाने किसका शगल है
जिसे कुछ लोग
लीला कहते हैं !

- आनंद
   

शनिवार, 28 सितंबर 2013

मिट्टी

उसे मिट्टी में ही खेलने दो
हाय राम! तेरा लल्ला तो मिट्टी खाता है
इस मिट्टी की खुशबू ही अलग है
पूरा मिट्टी का माधौ है
इस मिट्टी के लिए भी कुछ सोच
मिट्टी को खून से मत रंग
जाने किस मिट्टी का बना है
मिट्टी का असर जाता कहाँ है

अब क्या बचा है केवल मिट्टी
कब तक इंतजार करोगे मिट्टी खराब हो जाएगी
समय से आ जाते तो मिट्टी मिल जाती
देर कर दी आने में, मिट्टी उठ गयी
मिट्टी है जलने में समय तो लगेगा ही
मिट्टी से लौटकर घर मत आना
मिट्टी में कौन कौन शामिल था
चलो मिट्टी सुधर गयी

मिट्टी मिट्टी में मिल गयी !

- आनंद 

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

पाने की इच्छा

सारा दिन
बार बार
स्मृतियों को
उलट पुलट कर देखता हूँ
हर बार पाता हूँ कि
और और उलझ गयी है मेरी शिनाख्त
रात भये
मंझे से कटी पतंग की तरह गिरता हूँ
बिस्तर पर
जहाँ नींद उलझा देती है
पुरानी चरखी से उतरा हुआ सारा धागा

तुम आगे बढ़ गये हो
सारा कुछ उलझा हुआ छोड़कर
अपनी धवल राहों में
मैं तटस्थ हो गया हूँ समय से
और ढूँढ रहा हूँ,
तुमको ..न...न
बस धागे का एक सिरा
इस बार
बिना टूटे
ये शायद सुलझेगा नहीं !

बड़ी सकारात्मकता से भरी है यह दुनिया
पहाड़ों पर कचरा फेंकती है
और नदियों में मैला
हवा में जहर घोलती है
और दिलों में उदासी
अब तो किसी को खुश देखो तो भी डर लगता है
न जाने इस मुस्कान की कीमत
कितने आँसुओं ने चुकाया हो
आख़िर हर क़दम पर यही तो सिखाया जाता है हमें
प्रेम सिर्फ़ मिटने का नाम है
पाने की इच्छा 'पाप' है

हम ठोकर मारते हैं
इस
अच्छा होने की चाहत को
और ठाठ से हैं
अपने बे शिनाख्त वजूद में ही
तुम्हें पाने की इच्छा (बेशक पाप) के साथ !

-आनंद 

बुधवार, 25 सितंबर 2013

आत्महत्या


सल्फ़ास खा लेना
या कलाई की नशें काट लेना
नहीं है आत्महत्या
वो तो है ...
केवल गलत तरीके से किया गया
एक गैर जरूरी काम,
आत्महत्या तो  है
प्रेम की ऐसी राह चल पड़ना
जिसकी शुरुआत में ही
'एकतरफा मार्ग' लिखा हो

इसे ही बार बार
आदर्श कहा जाता है
तमाशबीनों की तरफ से
इस महिमामंडन में  कभी कभी
चुपके चुपके
पिस जाती है एक जिंदगी !

- आनंद

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मेरी सिगरेट




पचीस साल से थी
एक बुराई की तरह...
साथ ...मेरी सिगरेट !
अच्छाइयां इतना कहाँ रूकती हैं
छोड़ दिया एक झटके में
और महसूस किया
कि कैसे तुमने छोड़ दिया था ख्वाबों के ठीक बीच में ...
अचानक बस एक सन्देश से
बिना कुछ कहने का अवसर दिए
कई बार किया होगा मन बस एक बार बात करने का
जैसे मेरा करता है कभी कभार एक कश लेने का
मगर कुछ भय और कुछ अहम्
भय कि फिर से लत न पड़ जाए
अहम् कि  मैंने त्याग दिया
और इस तरह किसी एक पल में
अचानक लिया गया निर्णय
हो जाता है स्थायी ...
 
असल में
छोड़ना  है ही आकस्मिक क्रिया
धीरे धीरे कुछ नहीं छूटता
धीरे धीरे तो कसता है
हर फंदा
और फिर एक दिन अचानक
छूट जाता है वर्षों का साथ
जैसे कि मेरी सिगरेट,

कुछ जिंदगियाँ भी तो सिगरेट जैसी होती हैं
हमेशा सुलगकर सुकून देती
और कभी भी अचानक छोड़ दिए जाने को तैयार !

 - आनंद 

रविवार, 22 सितंबर 2013

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया
फिर वहीँ हंसती हुई फ़ोटो मढ़ाकर रख दिया

रख दिया अलमारियों में बंद करके रतजगे
और टूटे ख्वाब के टुकड़े उठाकर  रख दिया

आ गया था दिल किसी मगरूर क़दमों के तले
आदतन उसने जरा खेला  मिटाकर रख दिया

कुछ तसव्वुर जिंदगी भर साथ रहने थे मगर
मैंने हर तस्वीर एल्बम में लगाकर रख दिया

जब  कभी तारीकियाँ होंगी  जला लेगा  मुझे
रोशनी थी इसलिए शायद बुझाकर रख दिया

घूम आया हर गली 'आनंद' जिसके वास्ते
जिंदगी ने वो हसीं लम्हा छुपाकर रख दिया

_ आनंद

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

आंसुओं की झील में ही

आँसुओं की झील में ही प्यास को जीते चलें
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें

जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें

हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में  प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें

काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें

हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें

 - आनंद 

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

बेईमानी

बात चाहे खेल की हो
या जंग की
अब ये लगभग निश्चित है कि
जीतना तुझे ही है …. जिंदगी !
वैसे भी जो तेरे लिए खेल है
वही मेरे लिए जंग
मैं इस खेल में हूँ ही इसलिए
तेरी जीत जीत लगे
मेरा समर्पण  या पलायन
तुझे वंचित कर देगा
जीत के सुख से
इसलिए हार निश्चित जानते हुए भी
बने रहना है इस खेल में
बचपन में लुकाछिपी खेलने के दौरान
सीखी गयी बेईमानी
अब, बड़े काम आ रही है !

- आनंद



बुधवार, 11 सितंबर 2013

मैं प्रेम में नहीं हूँ ...

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर महसूस करता हूँ
अपनी सांसों में एक खुशबू
एक नन्ही सी जान ने जैसे खरीद लिए हों
गुलाबों के खेत के खेत
अनायास याद आ जाती है
कस्तूरी और कस्तूरी मृग की कथा,
इन्द्रधनुषी आकाश से उतर कर ईश्वर जब स्वयं
बढ़ा दे दोस्ती का हाथ
तब बेमानी हो जाती है
सारी बातें
मिलने और बिछुड़ने की,
दसों दिशाओं में किसी की ऐसी अलौकिक उपस्थिति
पहले तो कभी नहीं रही !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर काम करते-करते अचानक रुक जाते हैं हाथ
कोई इतना पास आ जाता है कि
पल भर को मन
बच्चा हो उठता है
उसे छूने की ललक में उठे हाथ
यन्त्र चालित से पहुँचते हैं
अपनी ही आँखों तक
आजकल ऐनक बार बार दुरस्त करते
रहने का मन होता है,
और आज से पहले...
अपने आँसू… कभी मोती नहीं लगे
न ही कभी हुई
उन्हें किसी के चरणों में चढ़ाने की
इतनी व्याकुलता !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर प्रेम शायद हो मुझमें कहीं
जैसे विष में भी छुपी होती है औषधि
शोधन… निरंतर शोधन से
संभव है औषधि का जैसे प्रकट हो जाना
वैसे ही शायद संभव हो सके एक दिन
मेरा अर्पण,
जिसे स्वीकार भी कर सको तुम…  मेरे आराध्य,

माँ कहती है
भाव के घाव कभी नहीं भरते
प्रेम के भी अश्वत्त्थामा हुए हैं
जो कभी नहीं मरते…. !

- आनंद




सोमवार, 9 सितंबर 2013

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही
ख्वाबों से हकीक़त ही  हमेशा  बड़ी रही

मैं मौत से भी अपने तजुर्बे न कह सका
लछमन की तरह सर की तरफ वो खड़ी रही

इस जिंदगी ने इतना तवज्जो दिया मुझे
हरदम मेरे सुकून के पीछे पड़ी रही

आज़ाद इश्क़ ने तो मुझे भी किया मियाँ  
पर रूह मिरी क़ैद की खातिर अड़ी रही

अगले जनम में देखने की बात हुई है
'आनंद' तुझे बेवजह जल्दी बड़ी रही

- आनंद



गुरुवार, 5 सितंबर 2013

बेवकूफ़




(एक)

तुमसे आगे नहीं बढ़ पाई
न मेरी कविता
न मैं,
हाँ बढ़ गया वक़्त
एक दिन
धीरे से कान में कहता हुआ
'बेवकूफ़'...
मैंने चौंककर खुद को देखा
मुस्कराया
आश्वस्त हुआ
कि आख़िरी वक़्त में कुछ तो रहेगा
पहचान के लिए
तुम न सही
तुमसे मिला कोई नाम ही सही  !

(दो)

मुझे शांति चाहिए
बेशक उसका नाम मृत्यु हो
तुम्हें संघर्ष चाहिए
बेशक उसका नाम जीवन हो
तुम मुझे भगोड़ा कहते हो
और मैं तुम्हें 'लालसी'
दोनों
जितना सही हैं
उतना ही गलत
तुमसे विछोह
शांति के बाद का संघर्ष है
तुम्हारा साथ
संघर्ष के बाद की शांति है
जीवन के लिए दोनों जरूरी हैं
ठीक हम दोनों के साथ की तरह !

- आनंद

बुधवार, 28 अगस्त 2013

कृष्णा …. माधवा !




कृष्णा …. माधवा !
चराचर नायक ….
देख रहे हो न अपनी लीला भूमि को
देख रहे होगे जरूर … धर्म के क्षत्रपों को
और शासकों को भी
योगियों के मन में भोग की आतुरता भी
और आमजन की निरीहता भी
सुनी ही होगी दामिनी की आर्त पुकार
आखिर अपनी कृष्णा की भी तो सुनी थी आपने
अपनों की तो सभी सुन लेते हैं
आपतो अहेतुकी कृपा करने वाले
जीव मात्र पर करुणा  रखने वाले परम कृपालु हैं
भारत वर्ष को किस पाप का दंड मिल रहा है प्रभु !
हे कण कण में व्याप्त मेरे कान्हा
ये वक्त मुरली की तान का है या कि सुदर्शन चक्र का …?
आज सांकेतिक नहीं ….
सच में आ जाओ भक्तवत्सल
अवतरित हो जाओ हम चलती फिरती लाशों में
ताकि हर किशोर, तरुण, आबालवृद्ध
उठा ले चक्र
आज बहुत जरूरत है एक महासमर की
निष्काम कर्म योग भूल गया है यह देश
अब यहाँ भोग को ही
जीवन मान लिया गया है प्रभो
और पतन को ही
उन्नति !!


जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ माधव !
बहुत बक बक करने लगा हूँ न आजकल ?
पर क्या करूँ
अंतर की इस व्यथा को तुमसे न कहूँ
तो किससे कहूँ !!

- आनंद





मंगलवार, 27 अगस्त 2013

गिड़गिड़ाना ...

प्रेम माँगने  से नहीं प्राप्त होता
कहा किसी सक्षम व्यक्ति ने
उसने समझ  लिया होगा प्रेम को
मैं अगर उसकी समझ से चला
तो चला ही जाउँगा  फिर
तुम्हारे देश से.…
जैसे चले जाते हैं प्राण
किसी भी शरीर से,
उसके पास होगी सामर्थ्य
होगा पराक्रम
निर्मित कर लेगा वह अपनी दुनिया स्वयं
जहाँ वह अपनी मर्जी से चुन सके प्रेम
मैं मूरख अगर चुनूँगा  भी
तो आँसू ही चुनूँगा  जन्म जन्म
कितना सहज रिश्ता है हमारा तुम्हारा
रो देना मेरे लिए आम बात है
रुला देना तुम्हारे लिए !

जो कर्ता हैं वह नहीं गिड़गिड़ाते
देख लेते हैं केवल गिड़गिड़ाना
मुस्करा पड़ते हैं मन ही मन
समझकर मोह, भ्रम, बेवकूफ़ी, और कमजोरी किसी की
जो प्रेम में होते हैं
वो नाक रगड़ते हैं दिन रात प्रियतम की एक झलक के लिए
वो कुछ नहीं करते
प्रेम स्वयं फूंक देता है
मान  सम्मान के महल को सबसे पहले,
ह्रदय में जल का सोता फूट पड़ता है
आँखें ख़ुशी पाकर भी बरसती हैं और गम पाकर भी ….

सुनो !
मैं एक ऐसे ही मूरख को जानता हूँ
कभी फुर्सत मिले तो जानने की कोशिश करना
कि कैसा है वह !

- आनंद 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

बोल देना सच, जहाँ खतरा रहा है

बोल देना सच, जहाँ खतरा रहा है जान को
हम वहीं ले जा रहे हैं आधुनिक इंसान को

दौड़ में आगे निकलने की अजब जद्दोज़हद
दाँव पर रखने लगे हैं बेहिचक सम्मान को

वो ज़माने और थे, जब आदमी की क़द्र थी
बोझ है रख दीजिये अब ताक़ पर ईमान को

कुछ नहीं जोड़ा बुढ़ापे के लिए हमने कभी
बेवजह का दोष क्यों दें हम भला संतान को

रौनकें बिखरी पड़ी हैं हर तरफ बाज़ार में
छटपटा फिर भी रहे हैं लोग इक मुस्कान को

जो सड़क को पार करता है डरा सहमा बहुत
है वही जिसने बचाया  गाँव की पहचान को

माँ नहीं कहती कभी परदेश जाने के लिए
सौंप आती है उन्हें औलाद ही भगवान को

एक कमरा दर्द का है एक में मजबूरियाँ
सोचिये 'आनंद' रखेगा कहाँ मेहमान को

 - आनंद




गुरुवार, 22 अगस्त 2013

केवल हम ही नहीं अकेले

केवल हम ही नहीं अकेले तूफां से दो चार हुए
डूबे लेकिन हम ही तनहा, बाकी बेड़े पार हुए

जीवन भर खुशियों ने हमसे आँख मिचौली खेली है
ऐसे नहीं तजुर्बे अपने इतने लज्ज़तदार हुए

कैसे बच्चों को समझाऊँ, रहने दें अलमारी में
लाइव ख़बरों के मौसम में, हम रद्दी अखबार हुए

किसको है परवाह दिलों की कौन किसी की सुनता है
दिलवालों के हाथों ज्यादा खुलकर दिल पर वार हुए

मेरे हिस्से का जितना था उतना मैंने भी पाया
जैसे कोटे वाली शक्कर मिलती है त्यौहार हुए

ये तनहाई का पौधा है तनहाई में पनपेगा
है 'आनंद' कहाँ शहरों में सहरा भी बाज़ार हुए

 - आनंद 

सोमवार, 19 अगस्त 2013

शब्द और अर्थ


देख रहा हूँ बैठा बैठा कुछ शब्दों को
जो हमने बोले थे तुमसे
आज खड़े हैं यहीं सामने
उन शब्दों को साथ लिए हैं
जो तुमने बोले थे मुझसे
यह कह-कह कर
'शब्दों में मत अटको जाना'...
'डूबो अर्थों में गहरे तक'
इस तरह शब्दों ने ही डुबो दिया मुझे
तुम अर्थों के साथ
उस पार खड़े मंद मंद मुस्करा रहे थे
और मैंने भी सीखा
प्रेम मुक्त करता है
वह तो अज्ञान है जो निभाने की कोशिश करता है
मोह..... नहीं नहीं आसक्ति
वह भला प्रेम कैसे हो सकता है ...

सूख गयी वो नदी
जहाँ डूबना था मुझे
मैंने भी मुस्कराते हुए पार कर लिया उसे
एक बात कभी कभी याद आ जाती है
"खुसरो दरिया प्रेम का"
मगर अगले ही पल एक बात और याद आती है
"समरथ को नहिं दोष गुसाईं"

खाली समय में मैं भी
अब और लोगों को डूबने की सीख देता हूँ !

- आनंद



सोमवार, 12 अगस्त 2013

निगोड़ी दुनिया ......!

आजकल सड़कों का सारा ट्रेफिक गायब है
होगा भी तो हमें नहीं मिलता
किसी के कुछ कहने से पहले ही मुस्करा पड़ता हूँ
कभी बहस नहीं करता किसी से
बल्कि मेरी बेफ़िक्री पर अब औरों को गुस्सा आता है
दुनिया का हर काम मेरी रूचि का हो गया है
हर इन्सान प्यारा लगता है
हर वक़्त प्यारा लगता है
हर जगह प्यारी लगती है
ये वही आसमान है न
जो आग का समंदर लगता था
अचानक तारों की जगह इतने सारे फूल ...
इतनी खुशबू  ...

मुझे कुछ नहीं हुआ है
कुछ हो गया है तो बस इस दुनिया को
निगोड़ी एकदम से बदल गयी है !

- आनंद 

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

आम लोगों की फ़िकर सरकार में मत ढूँढिए

आम लोगों की फ़िकर सरकार में मत ढूँढिए
आजकल अच्छी ख़बर अख़बार में मत ढूँढिए

दूसरों का दर्द भी,  अपना समझना चाहिए ,
बात अच्छी है, मगर व्यवहार में मत ढूँढिए

आदतन मजबूर है वो, ज़ख्म ही दे पायेगा
फूल के जैसा असर तलवार में मत ढूँढिए

देखिये घर भी महकता है किसी के प्यार से
खुशबुओं को उम्र भर बाज़ार में मत ढूँढिए

प्रेम का हर रंग सर माथे लगाकर देखिये
सिर्फ़ खुशियों की नज़र ही यार में मत ढूँढिये

वो वहीं है, जिस जगह सेवा समर्पण प्यार है
दोस्तों  'आनंद' को अधिकार में मत ढूँढिये

 - आनंद 

सोमवार, 5 अगस्त 2013

दिल्ली की दौड़ ....

हमेशा सुना था कि कोई इंसान पूर्ण नहीं होता ...
सब में कुछ न कुछ कमियां होती ही हैं .... ऐसा क्यों करता है ऊपर वाला ? क्यों हमारे कुछ टुकड़े.... हमारे अपने टुकड़े इधर उधर फेंक देता है ... जिसे हम जीवन भर ढूंढते रहते हैं ... सब कुछ होते हुए भी कुछ न कुछ सबका होता है जो नहीं होता अपने पास .......... ! कोई पा भी जाता है जल्द ही उन अंशों को ...जल्द पा जाता है .... और किसी का नसीब 
 अब ये मत कहना कि तलाश नहीं होती है सब को होती है बस रूप अलग अलग होते हैं किसी को पैसा किसी को प्रेम किसी को ज्ञान किसी को मोक्ष मगर हर बंदा शामिल है इस बिरादरी में ... 

अब जरा सी बात इज़ाज़त हो तो हम अपनी दिल्ली वालों की करलें .........
हर बंदा न केवल ख़ोज रहा है बल्कि दौड़ रहा है ...ऐसा भागता हुआ शहर आपको दुनिया में शायद ही कहीं मिले (केवल अनुमान के आधार पर क्योंकि मैं विश्वभ्रमण करके नहीं लौटा हूँ  ) .... 

यहाँ मेट्रो का गेट खुलता है तो लोग दौड़ते हुए उतरते हैं ...
सीढियां या एस्कलेटर तक दौड़ते हुए पहुँचते हैं ... अन्दर घुसने वाले भी दौड़ कर मेट्रो में दाखिल होते हैं ...रेड लाइट पर गाड़ी रोकते हैं तो लगभग सामने से पास होने वाले ट्रेफ़िक का आधा रास्ता रोक लेते हैं ... रेडलाईट होने के बाद भी मजबूरी में रुकते हैं और पीली लाइट होते ही चल पड़ते हैं .. बस में दौड़कर चढ़ते हैं उतर कर भी लगभग दौड़ लगा देते हैं .... लोग बसों में या अपनी गाड़ियों में आपको नाश्ता तक करते हुए अक्सर मिल जायेंगे..... कभी दो पल आराम से कहीं खड़े होकर यह दौड़ देखिये .....
मैं भी इसी का हिस्सा हूँ यारों ... पर क्यों ... मेरा टुकड़ा .... अंश कहाँ है ?

- आनंद 

रविवार, 4 अगस्त 2013

दर्द दोस्त

तुम .......!
कभी भी बहुत प्रिय नहीं रहे
मगर ईमानदार रहे हमेशा
साथ रहे
कभी नाराज़ नहीं हुए
कभी धोखा नहीं दिया
कभी बिना वजह ज्ञान नहीं दिया
अगर पल दो पल कभी इधर उधर गए भी तो सांझ होने से पहले लौट आये
तुम जैसा निस्वार्थ साथी कोई और नहीं मिला
ऐ मेरे प्यारे दर्द
मित्रता को याद करने वाले आज के इस दिन
तुझे एक सलाम तो बनता है
तुम साथ हो तो लगता है कि
हाँ मेरा अस्तित्व है अभी
आओ अब से
इस सम्बन्ध को और प्रगाढ़ करते हैं
शुभकामनायें मित्र !

- आनंद 

शनिवार, 3 अगस्त 2013

महसूस करता हूँ

महसूस  करता हूँ वैसे ही
तुम्हें मैं
जैसे जीवन महसूसता है
धरती को
जैसे धरती महसूस करती है जल वायु ऊष्मा और आकाश को
नहीं जानता कि जीवन विहीन धरती कैसी होगी
पर धरती के बिना जीवन अकल्पनीय है
जैसे अकल्पनीय है बादल के बिना बरसात
प्रकाश के बिना सूर्य
गुस्से के बिना तुम  :)
और तुम्हारे बिना मैं और मेरी कवितायें !

एक दिन, जब चाँद सालाना छुट्टियाँ मना रहा होगा ...
मध्यरात्रि में सूरज होगा  ठीक सर के ऊपर
तारे उछल कूद रहे होंगे उसकी ठंढी सतह पर
इससे पहले कि सूरज सुबह की पाली के लिए  गरम होना शुरू हो
तुम  आ जाना चुपके से
साथ चलेंगे घूमने हकीक़त के आसमान तक
क्योंकि सपनों पर अब बहुत ज्यादा यकीन करना
खुद को धोखा देना लगता है
तुम सूरज के पेट में गुदगुदी करना
मैं करूंगा रखवारी - इन खुशी भरे अद्भुत पलों की ...
कम्बख्त बार बार हाथ में आकर छटक जाते हैं

इस बार तुम वहाँ तक चलोगी न ?

- आनंद


शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

ये कैसा मौसम आया है....


ये कैसा मौसम आया है, दिल कैसा सौदाई है
पाकर मुझे अकेला फिर से यादों की बन आई है

अरसे बाद हुआ है झगड़ा मेरा ऊपर वाले से
अरसे बाद लगा है मेरी किस्मत ही तन्हाई है

तेरे दर पर भी वैसा हूँ जैसा अपने घर में था
सारे सपने पूछ रहे हैं, ये कैसी पहुनाई है ?

कुआँ बावली झरने नदियाँ  ताल पोखरे हरियाली
जग में जितना कुछ सुन्दर है सब तेरी रानाई है

ये धरती जितनी भोला की उतनी ही जुम्मन की है
मत इनको मज़हब में बांटो ये बेकार लड़ाई है

देश बेंच लेने की खातिर सारे गले मिल रहे हैं
कितना एका है चोरों में,  देता साफ़ दिखाई है

बात बात में हंसी ठहाके, बेफ़िक्री मस्ती वाला
वो 'आनंद' खो गया यारों, ये उसकी परछाई है

- आनंद


मंगलवार, 30 जुलाई 2013

प्रेम के बाद ...


दोनों ही तरफ से
अफ़सोस व्यक्त कर दिया गया था
'प्रेम' के बाद। ….
फिर चला दूसरे को बुरा बताने का दौर
एक दूसरे के दोस्तों ने
आनंद लिया निंदा रस का …
सहानुभूति जताई और ऐसे 'वक़्त' में खूब साथ दिया…।

किसी ने जाना कि
गरीब से प्रेम एक बड़ी भूल थी
(वस्तुतः अब सारा जोर इस पर था की उसे प्रेम न कहा जाए)
इस क्लास के लोग प्रेम को नहीं समझते
बनते हैं उन्मुक्तता में रूकावट

किसी ने जाना कि
महान लोग कितने खोखले होते हैं अन्दर से
रहते हैं हमेशा एक नए शिकार की तलाश में
प्रेम के नाम पर।
साझा हितों के लिए एक समूह में रहते हैं
जैसे बाबाओं का झुण्ड
गद्दीधर महंत देते हैं प्रेम पर प्रवचन
चेले चेलियाँ करती हैं जय-जय कार
जय  सात्विक प्रेम
जैसे व्रत में फलाहार !!

- आनंद



शनिवार, 27 जुलाई 2013

जनपथ : हिंदी के लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृति कर्मियों का सामूहिक बयान

जनपथ : 

हिंदी के लेखकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, संस्‍कृतिकर्मियों और पाठकों का सामूहिक बयान

हम हिंदी के लेखककवि, बुद्धिजीवी, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, ब्लॉगर, पत्रकार  और इंटरनेट पर सक्रिय पाठक देश के समक्ष उपस्थित तमाम चुनौतियों पर एतद्द्वारा अपना पक्ष रख रहे हैं तथा सम्बंधित सरकारों/अधिकारियों के समक्ष अपनी मांगे प्रस्तुत कर रहे है. यह कोई सांगठनिक कार्यवाही न होकर एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में हमारी सामूहिक कार्यवाही है.

१-     हम उत्तराखंड में आई भयावह प्राकृतिक आपदा पर गहरा शोक प्रकट करते हैं और उत्तराखंड की राज्य सरकार तथा संघीय सरकार से मांग करते हैं कि न सिर्फ़ पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाया जाय, पुनर्वास की पूरी व्यवस्था करे बल्कि पहाड़ों पर विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण और लूट की व्यवस्था पर गंभीर पुनर्विचार करते हुए पर्यावरण के अनुकूल नई नीतियाँ बनाए जिससे भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृति को रोका जा सके.  

२-     हम बिहार में विषाक्त मध्याह्न भोजन के चलते हुई बच्चों की दर्दनाक मृत्यु पर गहरा शोक और क्षोभ प्रकट करते हैं. यह किसी भी सभ्य समाज के लिए एक शर्मनाक घटना है. हमारे प्रशासन इतने नाकाबिल, नाकारा और असंवेदनशील हो चुके हैं कि इस तरह बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करते भी नहीं चूकते. हम बिहार की राज्य सरकार तथा संघीय सरकार से यह मांग करते हैं कि इस घटना की पूरी जाँच करा दोषियों को सख्त से सख्त सज़ा तो दी ही जाय साथ ही मध्याह्न भोजन का बजट बढाया जाय ताकि बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार मिल सके और इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए शीघ्र आवश्यक क़दम उठाये जाए. साथ ही हम देशभर में एक समान शिक्षा की नीति बनाने तथा इस क्षेत्र में निजीकरण पर रोक लगाने की मांग करते हैं.


३-     हम छत्तीसगढ़ में सोनी सोरी के मामले में हो रही न्याय में देरी के प्रति गहरी चिंता प्रकट करते हैं तथा माननीय उच्च न्यायालय से यह अपील करते हैं कि इस मामले में जल्दी से जल्दी और न्यायपूर्ण फ़ैसला सुनाया जाय. हम छत्तीसगढ़ सरकार तथा संघीय सरकार से मांग करते हैं कि इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच कराई जाय तथा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाय.

४-     हम कश्मीर में ज़ारी हालिया हिंसा पर गंभीर चिंता प्रकट करते हैं तथा कश्मीर की राज्य सरकार व संघीय सरकार से मांग करते हैं कि कश्मीर नीति पर पुनर्विचार करते हुए ऐसे प्रयास किये जाँय कि न सिर्फ़ घाटी में शान्ति स्थापित हो बल्कि कश्मीर से विस्थापित जन के पुनर्वास के लिए माहौल भी बनाया जा सके. हम घाटी के हिंसा पीड़ित लोगों के लिए और कश्मीर से विस्थापित जन के लिए  न्याय की मांग करते हैं. हम संघीय सरकार से AFSPA पर पुनर्विचार करने की मांग करते हैं.


५-     हम पूर्वोत्तर में ज़ारी हिंसा पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता एवं कवयित्री इरोम शर्मिला के प्रति अपना समर्थन और अपनी संवेदना प्रकट करते हुए संघीय सरकार से मांग करते हैं कि उनसे बातचीत की प्रक्रिया शुरू की जाय, उनकी माँगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाय और ऐसे हालत बनाए जाँय जिससे वह अपना अनशन समाप्त करने के लिए राज़ी हों.

६-     इशरत जहाँ तथा देश भर में फर्जी मुठभेड़ के शिकार लोगों के लिए न्याय की मांग करते हैं. इस मामले में ऐसी पहलकदमी की मांग करते हैं जिससे भविष्य में ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सके. साथ ही यह मांग करते हैं कि  देश भर में फर्जी मुकदमें में बंद लोगों, खासतौर पर आदिवासी, अल्पसंख्यक, तथा दलितों पर पुनर्विचार कर दोषमुक्त पाए जाने पर रिहा किया जाये .


७-     इलाहाबाद में कार्यालय महालेखाकार में पदस्थ जाने-माने हिंदी के कवि यश मालवीय के अमानवीय उत्पीड़न पर अपना प्रतिरोध दर्ज कराते हैं तथा माननीय राष्ट्रपति महोदय तथा महालेखाकार महोदय से इस मामले में हस्तक्षेप करने तथा दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग करते हैं.  

हस्ताक्षर  (सहमति के क्रम में)

१-     वीरेन्द्र यादव
२-     राजेश जोशी
३-     अरुण कमल
४-     केशव तिवारी
५-     शिरीष कुमार मौर्य
६-     विमलेश त्रिपाठी
७-     समर अनार्य
८-     राशिद अली
९-     अनघ शर्मा
१०-                        अभिनव श्रीवास्तव
११-                        कुमार अनुपम
१२-                        आदित्य प्रकाश
१३-                        अमित उपमन्यु
१४-                        कपिल शर्मा
१५-                        दिनेश राय द्विवेदी
१६-                        सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी
१७-                        अभिषेक ठाकुर
१८-                        आनंद कुमार द्विवेदी
१९-                        संदीप मील
२०-                        रामजी यादव
२१-                        पंकज मिश्रा
२२-                        राजेश कुमार खोबरा
२३-                        मनिका मोहिनी
२४-                        अरुण मिश्र
२५-                        दिगंबर ओझा
२६-                        हिमांशु पांड्या
२७-                        मनोज पाण्डेय
२८-                        रामजी तिवारी
२९-                        सचिन कुमार जैन
३०-                        अमलेंदु कुमार उपाध्याय
३१-                        शिव कुमार गांधी
३२-                        संज्ञा उपाध्याय
३३-                        निधि मेहरोत्रा
३४-                        आशीष मिश्रा
३५-                        विपिन चौधरी
३६-                        शैलेन्द्र श्रीवास्तव
३७-                        रजनीश साहिल
३८-                        अशोक मिश्र
३९-                        नूर ज़हीर
४०-                        अमर नदीम
४१-                        नीरज जैन
४२-                        राजेश गुप्ता
४३-                        सुनीता सानाढ्य पाण्डेय
४४-                        संदीप वर्मा
४५-                        मंजरी श्रीवास्तव
४६-                        देवयानी भारद्वाज
४७-                        कृष्ण कांत
४८-                        सौमित्र सक्सेना
४९-                        अमर नदीम
५०-                        अलका भारतीय
५१-                        रश्मि कीर्ति
५२-                        रामजी तिवारी
५३-                        केशव तिवारी
५४-                        संतोष चतुर्वेदी
५५-                        उमराह अज़ीज़
५६-                        निष्ठा सक्सेना
५७-                        अजन्ता देव
५८-                        मिथिलेश शरण चौबे
५९-                        मुकेश कुमार
६०-                        चन्दन भारद्वाज
६१-                        पुष्य मित्र
६२-                        अरुण अनिल सिंह
६३-                        विवेक भटनागर
६४-                        रोहिणी अग्रवाल
६५-                        गुलज़ार हुसैन
६६-                        जाय श्री राय
६७-                        अतुलेश अतुल ‘
६८-                        नीलाम्बुज सिंह
६९-                        विनीता मलिक
७०-                        आसिफ़ खान
७१-                        रिया सेन
७२-                        हरिओम राजोरिया
७३-                        उषा राय
७४-                        राकेश बिहारी
७५-                        देव यादव
७६-                        पल्लव
७७-                        पंकज चतुर्वेदी
७८-                        राजेश उत्साही
७९-                        कुलदीप अंजुम
८०-                        शम्भू यादव
८१-                        राजेश परेवा
८२-                        विजय शर्मा
८३-                        विनोद कुमार सिंह
८४-                        उद्भव मिश्र
८५-                        अस्स्मुरारी नंदन मिश्र
८६-                        प्रमोद कुमार तिवारी
८७-                        विमल चन्द्र पाण्डेय
८८-                        विनय अम्बर
८९-                        खुर्शीद अनवर
९०-                        अरविन्द चतुर्वेद
९१-                        लोकेश मालती प्रकाश
९२-                        प्रताप दीक्षित
९३-                        नलिन रंजन सिंह
९४-                        मुकुल सरल
९५-                        गंगा सहाय मीणा
९६-                        राजन विरूप
९७-                        मनोज कुमार झा
९८-                        सिद्धांत सूचित
९९-                        प्रेमचंद गांधी
१००-                   शशिकांत चौबे
१०१-                   अरुणाकर पाण्डेय
१०२-                   मलखान सिंह
१०३-                   महेश चन्द्र पुनेठा
१०४-                   नन्द किशोर नीलम
१०५-                   अनीता भारती
१०६-                   संजीव कुमार
१०७-                   सुधा ओम ढींगरा
१०८-                   मृत्युंजय प्रभाकर
१०९-                   अभिषेक श्रीवास्तव
११०-                   अभिनव आलोक
१११-                   कृष्णा मेनन
११२-                   महेंद्र मिहोन्वी
११३-                   सुबोध शुक्ला
११४-                   ओम निश्चल
११५-                   सविता सिंह
११६-                   सबा दीवान
११७-                   सुनील यादव
११८-                   नरेंद्र तोमर
११९-                   विशाल श्रीवास्तव
१२०-                   मदन कश्यप
१२१-                   गिरिराज किराडू
१२२-                   अशोक कुमार पाण्डेय