मेरी ग़ज़ल से कहीं भूख जो मिटी होती,
किसी गरीब की इज्ज़त नहीं लुटी होती |
कोई फुटपाथ पर भूखा नहीं सोया होता,
मेरी कलम से अगर रोटियां बटी होती |
मेरी ग़ज़ल है वो झुर्री भरा बूढा चेहरा,
कैसे इज्ज़त को छुपाये है इक फटी धोती |
भरी जवानी में भूखा नहीं सोया होता,
वक़्त से पहले कमर भी नहीं झुकी होती |
अगर ईमान बेंचकर वो कमाता दौलत,
ब्याह करने को नहीं बेटियाँ बची होती |
---आनंद द्विवेदी .
किसी गरीब की इज्ज़त नहीं लुटी होती |
कोई फुटपाथ पर भूखा नहीं सोया होता,
मेरी कलम से अगर रोटियां बटी होती |
मेरी ग़ज़ल है वो झुर्री भरा बूढा चेहरा,
कैसे इज्ज़त को छुपाये है इक फटी धोती |
भरी जवानी में भूखा नहीं सोया होता,
वक़्त से पहले कमर भी नहीं झुकी होती |
अगर ईमान बेंचकर वो कमाता दौलत,
ब्याह करने को नहीं बेटियाँ बची होती |
---आनंद द्विवेदी .