दर्द क्यों है, क्या नहीं स्वीकार तुझको ?
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
दैन्य से दुनिया भरी है क्या मिलेगा
ज़ख्म वाला ज़ख्म तेरे क्या सिलेगा
चाहता जो खुद किसी की सरपरस्ती
इन बुतों में ढूंढता तू हाय मस्ती
बंद भी कर खेल अब सारे अहम के
दे गिरा तू आज सब परदे वहम के
सोच तो ! क्यों चाहिए संसार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
आये तो मेहमान घर में कैसे आये
तू खड़ा है द्वार पर सांकल चढ़ाये
चाहते-दुनिया बची तो क्षेम कैसा
शेष है तू जब तलक फिर प्रेम कैसा
बीच से खुद को हटाकर देख ले
आख़िरी बाधा मिटाकर देख ले
कौन है जो रोकता हर बार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
एक बाज़ी खेल तू भी संग अपने
देखता चुपचाप रह तू ढंग अपने
एक दिन फिर तू कहीं खो जायेगा
बस उसी दिन तू पिया को पायेगा
नहीं है तेरा यहाँ पर मेल कोई
खेलने पाये न मन फिर खेल कोई
अब नहीं कुछ चाहिए रे यार तुझको
दर्द क्यों है, क्या नहीं स्वीकार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको !
- आनंद
30-10-2012
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
दैन्य से दुनिया भरी है क्या मिलेगा
ज़ख्म वाला ज़ख्म तेरे क्या सिलेगा
चाहता जो खुद किसी की सरपरस्ती
इन बुतों में ढूंढता तू हाय मस्ती
बंद भी कर खेल अब सारे अहम के
दे गिरा तू आज सब परदे वहम के
सोच तो ! क्यों चाहिए संसार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
आये तो मेहमान घर में कैसे आये
तू खड़ा है द्वार पर सांकल चढ़ाये
चाहते-दुनिया बची तो क्षेम कैसा
शेष है तू जब तलक फिर प्रेम कैसा
बीच से खुद को हटाकर देख ले
आख़िरी बाधा मिटाकर देख ले
कौन है जो रोकता हर बार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको
एक बाज़ी खेल तू भी संग अपने
देखता चुपचाप रह तू ढंग अपने
एक दिन फिर तू कहीं खो जायेगा
बस उसी दिन तू पिया को पायेगा
नहीं है तेरा यहाँ पर मेल कोई
खेलने पाये न मन फिर खेल कोई
अब नहीं कुछ चाहिए रे यार तुझको
दर्द क्यों है, क्या नहीं स्वीकार तुझको
क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको !
- आनंद
30-10-2012