सोमवार, 12 नवंबर 2012

अभी बहुत दूर है वो दीपावली



जब तक इन घरों में  उजाला नहीं होता
क्या मतलब है मेरे घर में हो रही जगमग का
मैं मान लेता यह बात कि सबका नसीब होता है उसके साथ
यदि
हमने ईमानदारी से इन्हें मौका दिया होता
प्रकृति से आयी निर्बाध रश्मियों को इन तक निर्बाध ही जाने दिया होता
हम मनुष्यों ने किया है मनुष्यों के खिलाफ षड़यंत्र
दोषी हैं हम इनके जीवन के अंधेरों के लिये
और चालाकी की हद तो यह है कि हम आज भी यह बात मानने  को राजी नहीं ....
बुधुआ, कलुआ, रमुआ अभी भी महेसवा ..और न जाने कितने 'आ'
अभी बहुत दूर है वो दीपावली जिसे तुम उमंग से मनाओगे
शायद  मैं तब तक नहीं रहूँगा
काश मैं उस दीपावली का हिस्सा होता
मैं एक बार तुम सबके साथ
छुरछुरिया जलाते हुए नाचना चाहता हूँ
मगर मेरी दिक्कत है कि मैं ढोंग नहीं कर सकता
और इसीलिये शंका में हूँ कि मेरे जीवन में
वैसी दीपावली
शायद ही आये !

- आनंद