छू लो , पगलाई उमंग को !
शाम नशीली रात चम्पई
दिवस सुहाने सुबह सुरमई
पिया मिलन की आस जगी है
फिर अधरों पर प्यास जगी है
मूक शब्द क्या कह पाएंगे
महा मिलन के मुखर ढंग को
छू लो , पगलाई उमंग को !
तन में वृन्दावन आने दो
मन को मधुवन हो जाने दो
फिर से मनिहारी मोहन को
बरसाने तक आ जाने दो
तन वीणा के तार बन गया
बजने दो अविरल मृदंग को
छू लो, पगलाई उमंग को !
मैं पूजा की थाल सजाये
कब से बैठा आस लगाये
सदियों बीत गए हों जैसे
कान्हा को नवनीत चुराए
सुन लो फिर वंसी का जादू
खिल जाने दो अंग-अंग को
आने दो हर सहज रंग को !
छू लो पगलाई उमंग को !!
आनंद द्विवेदी १५-०५-२०११