उड़ते उड़ते रंग उड़ गए हैं सारी दीवारों के
सुनते सुनते ऊब गए हैं किस्से लोग बहारों के
जीते जी जिसने दुनिया में 'कल का कौर' नहीं जाना
मरते मरते भी वो निकले कर्जी साहूकारों के
बढते बढते मंहगाई के हाथ गले तक आ पहुँचे
कुछ दिन में लाशों पर होंगे नंगे नाच बज़ारों के
कम से कम तो आठ फीसदी की विकाश दर चहिये ही
भूखी जनता की कीमत पर, मनसूबे सरकारों के
राजनीति से बचने वाले भले घरों के बाशिन्दों
कल सबकी चौखट पर होंगे पंजे अत्याचारों के
कहते कहते जुबाँ थम गयी चलते चलते पांव रुके
अब मेरे कानों में स्वर हैं केवल हाहाकारों के
ये 'आनंद' बहुत छोटा था जब वो आये थे घर-घर
अब फिर जाने कब आयेंगे बेटे 'सितबदियारों' के
--------- 'कल का कौर' = सुकून की रोटी ...यह अवधी का एक मुहावरा है
सितबदियारा = जयप्रकाश नारायण का गाँव
- आनंद
१९-०९-२०१२
सुनते सुनते ऊब गए हैं किस्से लोग बहारों के
जीते जी जिसने दुनिया में 'कल का कौर' नहीं जाना
मरते मरते भी वो निकले कर्जी साहूकारों के
बढते बढते मंहगाई के हाथ गले तक आ पहुँचे
कुछ दिन में लाशों पर होंगे नंगे नाच बज़ारों के
कम से कम तो आठ फीसदी की विकाश दर चहिये ही
भूखी जनता की कीमत पर, मनसूबे सरकारों के
राजनीति से बचने वाले भले घरों के बाशिन्दों
कल सबकी चौखट पर होंगे पंजे अत्याचारों के
कहते कहते जुबाँ थम गयी चलते चलते पांव रुके
अब मेरे कानों में स्वर हैं केवल हाहाकारों के
ये 'आनंद' बहुत छोटा था जब वो आये थे घर-घर
अब फिर जाने कब आयेंगे बेटे 'सितबदियारों' के
--------- 'कल का कौर' = सुकून की रोटी ...यह अवधी का एक मुहावरा है
सितबदियारा = जयप्रकाश नारायण का गाँव
- आनंद
१९-०९-२०१२