बदगुमानी है, या ऐतबार तक आ पहुंचा हूँ,
जो भी हो आपके दरबार तक आ पहुंचा हूँ
आज भी, उसको खिलौने पसंद हों शायद
मैं यही सोंचकर बाज़ार तक आ पहुंचा हूँ
जिसको देखो वो यहाँ बेखुदी में लगता है
मैं भी शायद दरे-सरकार तक आ पहुंचा हूँ
मुझको मांझी का पता था न खबर मौजों की
हौसला देखिये, मझधार तक आ पहुंचा हूँ
मैं उसे खोजने निकला था सितारों कि तरफ
खोजता खोजता संसार तक आ पहुंचा हूँ
दिल्लगी! मैं तेरे इंकार तक आ पहुंचा हूँ
-आनंद द्विवेदी १२-०१-२०१२